अंधविश्वास से निजात आखिर कब

जादू टोना के नाम पर किसी के साथ ज्यादती की ओडिशा की घटना पहली नहीं है। देश में कई मौकों पर इंसानियत को शर्मसार करने वाली तस्वीर सामने आ चुकी है। मगर आज तक कोई समाधान नहीं हो सका।
ओडिशा की घटना
ओडिशा की घटनाPankaj Baraiya - RE

राज एक्सप्रेस। यह घटना बताने के लिए काफी है कि समाज में बहुत सारे लोग वैज्ञानिक चेतना के अभाव में किस कदर किसी बीमारी के कारण पर विचार करने की स्थिति में नहीं पहुंच सके हैं।

ओडिशा के गंजम से इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला एक मामला सामने आया है। कुछ लोगों ने जादूटोना करने के शक में छह बुजुर्गो के दांत तोड़ दिए और उन्हें मानव मलमूत्र खाने के लिए मजबूर किया। हैरानी की बात यह है कि पीड़ित मदद के लिए गुहार लगाते रहे, लेकिन कोई उनकी सहायता के लिए आगे नहीं आया। गोपुरपुर गांव के कुछ लोगों को शक था कि छह बुजुर्ग व्यक्ति जादूटोना कर रहे हैं, जिसके चलते उनके इलाके में कम से कम छह महिलाओं की मौत हो गई और सात अन्य बीमार हो गईं। पुलिस के मुताबिक उन्होंने मंगलवार को छह लोगों को जबरदस्ती घर से बाहर निकाला और उन्हें मानव मलमूत्र खाने के लिए मजबूर किया, बाद में उनके दांत उखाड़ दिए। इन छह ने मदद की गुहार भी लगाई लेकिन कोई भी उनके लिए आगे नहीं आया। जादू टोना के नाम पर किसी के साथ ज्यादती की यह पहली घटना नहीं है। देश में कई मौकों पर इंसानियत को शर्मसार करने वाली तस्वीर सामने आ चुकी हैं। मगर आज तक कोई समाधान नहीं हो सका।

यह घटना अपने आप में बताने के लिए काफी है कि विकास के बड़े-बड़े दावों के बीच हमारे समाज में बहुत सारे लोग वैज्ञानिक चेतना के अभाव में किस कदर किसी बीमारी के कारण पर विचार करने की स्थिति में नहीं पहुंच सके हैं। यह एक जगजाहिर तथ्य है कि ऐसे अंधविश्वासों की वजह से देश भर में कितने लोगों और खासकर महिलाओं को त्रसद उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। तांत्रिक या ओझा के बहकावे में आकार किसी महिला को डायन या काला जादू करने वाली बताने, उसे मैला पिलाने, निर्वस्त्र करके घुमाने और हत्या तक कर देने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। विडंबना है कि ऐसे अंधविश्वासों में पड़े लोगों को यह भी अहसास नहीं होता कि भ्रम में पड़ कर वे अपराध कर रहे हैं। कई बार धार्मिक परंपरा का नाम देकर ऐसी धारणाओं का बचाव किया जाता है। देश के कुछ राज्यों में जब अंधविश्वास के खिलाफ कानून बनाने की कोशिशें की जा रही थीं, तो उसके विरोध के लिए धार्मिक पक्ष का ही हवाला दिया गया था।

साफ है कि अंधविश्वासों के बने रहने में कुछ लोग अपना हित समझते हैं और इसीलिए वैज्ञानिक सोच के बजाय भ्रम पर आधारित परंपराओं को बढ़ावा देने में लगे रहते हैं। महाराष्ट्र में अंधविश्वास विरोधी आंदोलन और जागरूकता अभियानों की कमी नहीं रही है। इसके बावजूद आज भी देश में कहीं भी जादू-टोना या अंधविश्वास पर आधारित मान्यताओं की वजह से किसी की हत्या कर दी जाती है तो यह सोचने की जरूरत है कि, व्यवस्थागत रूप से सामाजिक विकास के किन पहलुओं की अनदेखी की गई है। भारतीय संविधान की धारा 51-ए (एच) के तहत वैज्ञानिक दृष्टि के विकास और जरूरत को नागरिकों को बुनियादी कर्तव्य के रूप में रेखांकित किया गया है। पर आजादी से बाद से अब तक सरकारों की ओर से शायद ही कभी इस मकसद से कोई ठोस पहलकदमी की गई या वैज्ञानिक चेतना के विकास, उसके प्रचार-प्रसार को मुख्य कार्यक्रमों में शामिल किया गया। नतीजतन, परंपरागत तौर पर जिस रूप में अंधविश्वास समाज में चलता आया है, लोग उससे अलग कुछ सोचने की कोशिश नहीं करते। जरूरत इस बात की है कि न केवल सामाजिक संगठनों, बल्कि खुद सरकार की ओर से भी शिक्षा-पद्धति में अंधविश्वासों के खिलाफ पाठ शामिल करने के साथ-साथ व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाएं। अन्यथा अंधविश्वास की वजह से होने वाली घटनाएं हमारे तमाम विकास पर सवाल उठाती रहेंगी।

आज की तारीख में बाबाओं व तांत्रिकों का धंधा-अंधविश्वास के कारण ही चल रहा है। सच कहा जाए तो अंधविश्वास फैलाने वाले काफी संगठित और मजबूत हैं, तभी तो उनका विरोध करने पर नरेंद्र दाभोलकर जैसे लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। संविधान में वैज्ञानिक सोच को आगे बढ़ाने के संकल्प के बावजूद कार्यपालिका और विधायिका के स्तर पर अंधविश्वास से लड़ने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई देती। कुछ राज्यों में भले इस मामले में कानून बन गया हो, लेकिन ज्यादातर राज्य इसे लेकर उदासीन हैं। अक्सर जाने-अनजाने प्रशासन ही इसे बढ़ावा देता रहता है। अंधविश्वास विकास और तरक्की के रास्ते में बड़ी बाधा है। सरकार को चाहिए कि वह अफवाह फैलाने वालों से सख्ती से निपटे और लोगों को जागरूक करे। आज अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच के खिलाफ सामाजिक आंदोलन की जरूरत है। इसके लिए सरकार, सामाजिक-धार्मिक संगठनों को एकजुट होना होगा। शाब्दिक अर्थ में अंधविश्वास मनुष्य द्वारा अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अज्ञानवश किसी भी व्यक्ति-वस्तु पर आंख मूंदकर अडिग विश्वास करना कहा जा सकता है। जब उसे यह भी ध्यान नहीं रहता कि ऐसा करने से उसका व उसके अपनों का नुकसान हो रहा है और उसे मौत की राह पर ले जा रहा है। यह वही है जो उसकी सही-गलत की सोच ही खत्म कर देता है और मनुष्य अधोगति के रास्ते पर चल पड़ता है। यह बात और भी मन को दुखी करती है जब समाज व राष्ट्र को दिशा देने वाला शिक्षित वर्ग ही अंधविश्वास के जाल में फंसकर न जाने क्या-क्या कुकृत्य कर डालता है। खुद को मौत के चंगुल में झोंक देते हैं और वह भी महज अपनी या अपने करीबी की खुशी के लिए व धन की वृद्धि के लिए!

ऐसा ही एक वाकया दिल्ली के बुराड़ी में देखने को मिला था, जहां 11 लोगों ने अंधविश्वास में फंसकर खुदकुशी कर ली थी। ऐसे ही राजस्थान व महाराष्ट्र के अन्य उदाहरण भी हैं जहां परिवार के किसी सदस्य ने अंधविश्वास के कारण अपने ही परिवार को मौत के घाट उतार दिया या फिर पूरे परिवार ने सायनाइड खाकर आत्महत्या कर ली। यह सोचनीय है कि इस तरह के कार्य करके ये लोग समाज को किस दिशा की ओर ले जाना चाहते हैं। कहा जाता है हमारा देश बाबाओं का देश है। लेकिन उनमें से अनगिनत ढोंगी बाबा भी खुद को स्थापित किए हुए हैं, जो भोले-भाले लोगों को धन, विद्या, बीमारी के ठीक होने, मृत्यु दोष दूर करने, सौतन से छुटकारा पाने, संतान व बेटे की प्राप्ति आदि अनेक लालच देकर ना जाने क्या क्या कर्मकांड व टोने-टोटके करवाते हैं। ऐसे कार्यो से दूसरों का तो नुकसान होता ही है, साथ ही हम लोग खुद का भी नुकसान कर बैठते हैं और इन ढोंगी बाबाओं का व्यापार चलता रहता है।

इनके यहां हर छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा आदमी बैठा मिल जाएगा। लालच के अंधकार में उन्हें अच्छा-बुरा कुछ नजर नहीं आता। होली-दिवाली, अमावस्या-पूर्णिमा की रात को पता नहीं कितने ही चौराहों पर कहीं न कहीं कुछ-कुछ रखा हुआ मिल जाएगा। पश्चिम बंगाल में कामाख्या देवी पर तो जीव बलि ही दी जाती है। इसके अलावा हर शहर में पेड़ के नीचे तंबू गाड़े इन जन्त्र-मंत्र वाले बाबाओं के खोमचे मिल जाएंगे। सामान्य तौर पर हमारे देश में बहुत तरह के अंधविश्वास फैले हुए हैं। ये न केवल अभी जागृत हुए हैं बल्कि इनकी जड़े प्राचीन काल से स्थापित हैं। बिल्ली रास्ता काट गई, किसी काम की शुरुआत करते समय छींक आना, सूर्यग्रहण-चंद्रग्रहण में बाहर जाना, मंगलवार को बाल काटना, सांय के समय सफाई करना आदि अनेक कार्य हमारे समाज में अशुभ माने जाते हैं। लेकिन मूल कारणों को जाने बिना ही हम सभी भेड़ चाल का हिस्सा बन जाते हैं।

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