पाकिस्तान का इलाज करने सीमा पर हमारे जवान पूरी तरह से मुस्तैद

पुलवामा हमले को 2 साल हो गए हैं। इन दो साल में भारत ने पाकिस्तान को जो सबक सिखाया है, उससे भी वह सुधरा नहीं है। आए दिन सीमा पर घुसपैठ की खबरें आ रही हैं।
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भारत के इतिहास में 14 फरवरी की तारीख जम्मू कश्मीर की एक दुखद घटना के साथ दर्ज है। आतंकियों ने दो साल पहले देश के सुरक्षाकर्मियों पर कायराना हमला किया था। इस हमले में 40 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए थे और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हुए थे। पुलवामा में जैश-ए-मोहमद के एक आतंकवादी ने विस्फोटकों से लदे वाहन से सीआरपीएफ जवानों की बस को टक्कर मार दी थी। इस टक्कर के बाद एक जोरदार धमाका हुआ और बस से जा रहे सीआरपीएफ के जवानों के क्षत विक्षत शरीर जमीन पर बिखर गए थे। हमले को अंजाम देने वाले आदिल, कारी यासिर, सज्जाद भट्ट, उमर फारूक, मुदसिर अहमद खान आदि सभी मारे जा चुके हैं। हमले के 12 दिन बाद भारत ने पाक में एयर स्ट्राइक कर जवानों की शहादत का बदला लिया था। आजाद भारत में यह शायद पहला मौका था, जब पाकिस्तान पर भारत की कार्रवाई का लगभग पूरी दुनिया ने समर्थन किया था।

आज पुलवामा हमले को पूरे दो साल हो गए हैं। इन दो साल में पाकिस्तान अपनी आतंक परस्त नीति को लेकर बेपर्दा हुआ है। शुरू में तो हमेशा की तरह पाकिस्तान ने हमले में हाथ होने से इनकार किया। भारत ने सख्त चेतावनी दी, जबकि संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान को चेताया कि वह अपनी धरती पर मौजूद आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई करे। अमेरिका-फ्रांस सहित दुनिया के अधिकत्तर देशों ने इस हमले की कड़ी निंदा की। रूस के राष्ट्रपति ने पीएम मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को शोक संदेश भेजा। चीन ने घटना की निंदा जरूर की, लेकिन जैश सरगना मसूद अजहर पर अपना रवैया नहीं बदला। हालांकि, बाद में पाकिस्तान के एक मंत्री ने संसद में स्वीकार किया कि पुलवामा हमला हमने ही कराया है। इस बयान की पूरी दुनिया में निंदा की गई। जैसे-तैसे पाक ने इस बयान पर डैमेज कंट्रोल किया, मगर तक तक उसकी सच्चाई सामने आ चुकी थी। पाकिस्तान भले ही पुलवामा हमले पर चुप रहे, मगर भारत समेत कई देश यह जानते हैं कि साजिश किसकी थी। जो भी हो, पुलवामा के बाद सरकार ने सेना को फ्री हैंड दे रखा है। भारत में आतंक फैलाने के इरादे से आने वाले दहशतगर्दों को जवान दोजख में पहुंचाने का काम कर रहे हैं।

भारत हमेशा से अमन-प्रिय देश रहा है। दूसरों के मामलों में हस्तक्षेप करना और बेवजह युद्ध जैसे हालात उत्पन्न करने की हमारी कभी मंशा नहीं रही है। इसीलिए हम भारत-पाक संबंधों में हर बार आने वाली तल्खी को बातचीत के जरिए सुलझाने के पक्षधर हैं लेकिन हमसाया मुल्क ने इसे हमारी कमजोरी मानने की भूल की। यही वजह है कि 2016 में पहले पठानकोट और फिर उरी में हुए हमले के बाद सरकार ने अपनी नीति में स्पष्ट बदलाव किया। भारत ने पाक को जो सबक सिखाया है, उससे भी वह सुधरा नहीं है। समय-समय पर सीमा पर आतंकियों के साथ जवानों की मुठभेड़ इसकी गवाह है। पाकिस्तान को आतंकवाद का दुष्परिणाम देखना होगा।

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