तृणमूल कांग्रेस के कई अहम नेताओं का बागी रुख बढ़ा रहा मुश्किल

पाक के गृह मंत्री एजाज अहमद शाह ने अपने देश में आतंकी संगठनों की मौजूदगी कबूल करते हुए कहा कि कश्मीर के मुद्दे पर दुनिया पाक पर भरोसा ही नहीं कर रही है।
तृणमूल कांग्रेस
तृणमूल कांग्रेसSocial Media

देश या राज्य स्तर पर होने वाले किसी चुनाव के पहले कुछ नेताओं का अपनी पार्टी को छोडऩा और अन्य दल में शामिल होना अब आम हो चुका है। इसमें इस बात का ख्याल रखना जरूरी नहीं समझा जाता कि उस नेता को अपने क्षेत्र की जनता का समर्थन किन आधारों पर मिला था और उस भरोसे में पार्टी की विचारधारा की क्या जगह है। यह एक तरह से अपने सामने आए अवसरों को देख कर अपनी निष्ठा को दरकिनार करने जैसा होता है, लेकिन लोकतंत्र में दल बदलने को एक आम प्रक्रिया के तहत देखा जाता है। इसके बावजूद यह सच है कि चुनाव के अवसर पर पार्टियों को छोडऩे की गतिविधियों का मकसद मुख्य रूप से अवसरों का लाभ उठाना होता है। बंगाल में भावी चुनावों के पहले सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के नेता जिस तरह एक-एक कर पार्टी छोड़ रहे या पदों से इस्तीफा दे रहे हैं, उसे इसी संदर्भ में देखा जा सकता है।

गौरतलब है कि अब तक तृणमूल कांग्रेस के कई अहम नेताओं का बागी रुख सामने आ चुका है। एक बड़े नेता सुवेन्दु अधिकारी जहां तृणमूल से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम चुके हैं, वहीं लक्ष्मी रत्न शुक्ला ने भी मंत्री पद छोड़ दिया था। फिर इसी पार्टी के विधायक अरिंदम भट्टाचार्य भी अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं। इसके बाद तो नेताओं की भाजपा में आने की लाइन लग गई। इन नेताओं का आम आरोप है कि पार्टी और सरकार में उन्हें आजादी से काम नहीं करने दिया जा रहा था। इनका यह भी मानना है कि ममता बनर्जी की पार्टी के पास राज्य के युवाओं के लिए कोई दृष्टिकोण नहीं है। संभव है यह आरोप सही हों। मगर सवाल है कि इन नेताओं को समूचा कार्यकाल निभा लेने के बाद अब जाकर चुनावों के समय ये सब कमियां क्यों नजर आने लगीं!

क्या यह भाजपा के उभार का असर है? फिर इस पहलू को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि तृणमूल कांग्रेस अपने उन नेताओं को ऐन वक्त पर संभाल कर नहीं रख पा रही है, जिन्होंने पार्टी के लिए सालों काम किया। बंगाल में विधानसभा चुनावों की आधिकारिक घोषणा अभी नहीं हुई है, पर इससे पहले वहां जिस पैमाने पर राजनीतिक गतिविधियां शुरू हो चुकी हैं, उससे साफ है कि इस बार का चुनाव ज्यादा चुनौतियों से भरा साबित हो सकता है। यों फिलहाल तृणमूल कांग्रेस के अलावा वामपंथी दलों और कांग्रेस के गठजोड़ के समांतर तीसरे ध्रुव के रूप में भाजपा जिस रूप में खुद को दर्ज कर रही है, वह खासतौर पर सत्ताधारी दल के लिए चिंता का कारण बन रहा है। हालत यह है कि जनता का समर्थन हासिल करने के लिए आजमाए जाने वाले तौर-तरीकों के बीच तृणमूल और भाजपा के बीच जैसे टकराव सामने आ रहे हैं, उससे चुनाव के शांतिपूर्ण गुजरने को लेकर आशंकाएं खड़ी हो रही हैं। कई जगहों से हिंसक टकराव की खबरें आ चुकी हैं। सवाल यह है कि लोकतांत्रिक माहौल में चुनाव होने के हालात कमजोर होंगे तो इससे किसे कितना फायदा मिल जाएगा!

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे राज एक्सप्रेस वाट्सऐप चैनल को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। वाट्सऐप पर Raj Express के नाम से सर्च कर, सब्स्क्राइब करें।

और खबरें

No stories found.
logo
Raj Express | Top Hindi News, Trending, Latest Viral News, Breaking News
www.rajexpress.com