नक्सलवाद पर लगाम जरूरी

देश के जरूरी मुद्दों से निपटने के बाद अब मोदी सरकार के टारगेट पर नक्सली हैं। आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बने नक्सलियों से निपटने की रणनीति अब तक कामयाब नहीं हो पाई है।
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"अब मोदी सरकार के टारगेट पर नक्सली हैं। आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बने नक्सलियों से निपटने की रणनीति बनाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सल प्रभावित राज्यों के मुयमंत्रियों के साथ बैठक की। उम्मीद है कि समस्या का समाधान निकलेगा।"

राज एक्सप्रेस। देश के जरूरी मुद्दों से निपटने के बाद अब मोदी सरकार के टारगेट पर नक्सली हैं। आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बने नक्सलियों से निपटने की रणनीति अब तक कामयाब नहीं हो पाई है। मगर अब लगता है कि सरकार इस समस्या को खत्म करके ही मानेगी। नसलियों के खात्मे के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सल प्रभावित राज्यों के मुयमंत्रियों के साथ बैठक की। इस बैठक में अमित शाह ने नक्सल प्रभावित 10 राज्यों के मुयमंत्रियों से बातचीत की। गृह मंत्री अमित शाह ने पहली बार नक्सल मुद्दे पर बैठक की है।

बैठक में उार प्रदेश, बिहार, छीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल ने हिस्सा लिया। बैठक में नक्सलियों के नए ठिकाने, जैसे महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छीसगढ़ के ट्राई जंक्शन पर चर्चा की गई। माना जा रहा है कि, देश के कुछ हिस्सों में जहां नक्सली गतिविधियां ज्यादा हैं, वहां के लिए बड़ी रणनीति तैयार की जाएगी। नक्सलवाद की घटनाओं पर रोक लगाने में मोदी सरकार पिछले कार्यकाल में काफी हद तक सफल रही थी। पर समय-समय पर नक्सलियों की करतूत से देश दहलता रहा। याद होगा कि पहले कार्यकाल में मोदी सरकार ने 126 जिलों में से 44 जिलों को नक्सल मुक्त घोषित किया था।

इस दौरान ऐसा देखने में भी आया कि प्रभावित राज्यों के नक्सली गतिविधि वाले जिलों में सुरक्षा बलों की तैनाती, स्थानीय पुलिस की सक्रियता और केंद्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं से नक्सलियों के पांव उखड़ रहे हैं और वे इन पुराने इलाकों को छोड़कर नए जंगलों में अपनी जमीन तलाश रहे हैं। इस बात को केंद्र सरकार ने घोषित भी किया था कि देश के 8 ऐसे नए जिले हैं जहां नक्सली अपना आधार तलाशने में जुटे हैं। इस पहलू पर केंद्र सरकार तथा सुरक्षा एजेंसियों को सजग-सतर्क रहकर कारगर कार्यनीति बनानी होगी ताकि नक्सलवाद का फन वहां खड़ा न हो सके। यह सही है कि नक्सलवाद अपना वजूद खो रहा है। स्थानीय किशोर, उभरते युवा, खून-खराबे का लगातार दंश झेल चुके वृद्ध इस बात को अच्छी तरह जान चुके हैं कि नक्सलियों के बहकावे में आकर उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ।

स्थानीय नागरिकों को अब यह बात भी समझ आ चुकी है कि नक्सली संगठनों के बड़े नेता बड़े शहरों में आलीशान जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं और हम इन खतरनाक जंगलों में रोजी-रोटी तक के लिए मोहताज हैं। पर केंद्र और राज्यों द्वारा चलाई जा रही नक्सल विरोधी मुहिम में सशस्त्र विद्रोहियों द्वारा की जाने वाली हिंसक घटनाएं यह सवाल जरूर पैदा करती हैं कि आखिर क्या वजह है कि सुरक्षा बलों के लगातार सर्च अभियान, सशक्त ऑपरेशन और कौशल विकास योजना के जरिए युवाओं को बेरोजगार करने की पहल, सुरक्षा बलों की सतर्कता के बावजूद ऐसा हो रहा है। हिंसक वारदातें इस बात की ओर संकेत करती हैं कि अभी भी समग्र रूप से एक कुशल व कारगर नीति की जरूरत है।

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