भारत-चीन बॉर्डर : चीन सीमा पर तनाव चरम पर

भारत-चीन बॉर्डर : सरकार ने एलएसी पर नियमों में बदलाव किया है। सेना के फील्ड कमांडरों को अधिकार दिया गया है कि वह विशेष परिस्थितियों में जवानों को हथियारों के इस्तेमाल की इजाजत दे सकते हैं।
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भारत-चीन बॉर्डरSocail Media

भारत-चीन बॉर्डर : सरकार का फैसला बता रहा है सीमा पर तनाव चरम पर है।लद्दाख की गलवान घाटी में हालात को जल्द काबू नहीं किया गया तो स्थिति और चिंताजनक हो सकती है। ऐसे में युद्ध तक की नौबत से इनकार नहीं किया जा सकता। गलवान घाटी में 20 भारतीय जवानों के शहीद होने के बाद स्थिति काफी तनावपूर्ण है। हालात अभी ऐसे हैं कि कभी भी चीनी और भारतीय सेना आमने सामने आ सकती है, ऐसे में जल्द से जल्द विवाद को बातचीत के जरिए सुलझाना जरूरी हो जाता है। भारत बातचीत को तैयार है, लेकिन चीन के पिछले धोखे को याद रखते हुए सेना ने तैयारियों में भी कोई कमी नहीं छोड़ी है। पिछले दिनों गलवान में जो कुछ हुआ ऐसा 45 सालों बाद देखा गया। इतने सालों में वहां कोई गोली नहीं चली थी न ही किसी जवान की जान गई थी। ऐसा दोनों देशों के बीच संधि की वजह से था जिसमें तय किया गया था कि दोनों ही देशों के जवान बॉर्डर पर हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। इस हिंसक झड़प में चीन के जवानों ने भी जान गंवाई है। वहीं 20 साथियों को खोने का गम भारतीय जवानों को भी है। ऐसे में अब पिछली संधियों का पालन कर पाना मुश्किल हो सकता है।

मगर अब सरकार ने एलएसी पर नियमों में बदलाव किया है। इसके तहत सेना के फील्ड कमांडरों को यह अधिकार दिया गया है कि वह विशेष परिस्थितियों में जवानों को हथियारों के इस्तेमाल की इजाजत दे सकते हैं। एलएसी पर तैनात कमांडर सैनिकों को सामरिक स्तर पर स्थितियों को संभालने और दुश्मनों के दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देने की पूरी छूट होगी। बता दें कि देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि दोनों पक्षों की सेनाएं 1996 और 2005 में एक द्विपक्षीय समझौतों के प्रावधानों के अनुसार टकराव के दौरान हथियारों का इस्तेमाल नहीं करती हैं। उन्होंने जवाब में कहा था, 15 जून को गलवान में हुई झड़प के दौरान भारतीय जवानों ने इसलिए हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया था। चीन के साथ सीमा पर तनाव बढ़ने के मद्देनजर सरकार ने हथियार और गोला बारूद खरीदने के लिए सेना के तीनों अंगों को 500 करोड़ रुपए तक की प्रति खरीद परियोजना की आपात वित्तीयशक्तियां दी हैं।

भारत दो मोर्चं पर तैयारी शुरू कर दी है। तमाम पेंडिंग पड़ी खरीदारी को तेज कर दिया गया है इसके अलावा साजो-सामान के भंडार को बढ़ाया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर मामले से पाक को वैश्विक मंच पर अगल-थलग करने की कूटनीतिक सफलता के बाद अब वहां नया राजनीतिक माहौल बनाने की कवायद चल रही है। सरकार के कूटनीतिकार इस कोशिश में हैं कि नई राजनीतिक पौध कश्मीर की आजादी जैसे मुद्दे को पीछे छोड़ जम्मू-कश्मीर को वापस राज्य का दर्जा दिलाने व कश्मीरी पहचान को बरकरार रखने जैसा नया नैरेटिव शुरू करें। सरकार का मानना है कि विकास और अन्य प्रशासनिक व सामाजिक काम के साथ नया राजनीतिक माहौल बनने से हालात तेजी से समान्य होगा।

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