किसान आंदोलन से व्यापारियों के लिए माल की आवाजाही का संकट खड़ा होने लगा

कृषि कानूनों के खिलाफ सडक़ों पर डटे किसानों को मनाने एक बार फिर प्रधानमंत्री ने शांति के साथ हल निकालने पर जोर दिया है। किसानों को समझना होगा कि अगर सरकार बार-बार नुकसान की बात न होने की बात कह रही है।
व्यापारियों के लिए माल की आवाजाही का संकट खड़ा होने लगा
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नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पिछले 15 दिन से चल रहा किसान आंदोलन अभी थमता नहीं लगता। जिस तरह से किसान संगठनों और केंद्र सरकार-दोनों ने हठधर्मिता का रुख अपनाया हुआ है, उससे साफ है कि झुकने को कोई तैयार नहीं है और दोनों ही पक्षों ने इसे नाक का सवाल बनाते हुए आरपार की लड़ाई करने की ठान ली है। किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के बीच अब तक छह दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। हालांकि सरकार हालात की गंभीरता को समझ रही है और किसानों की ओर से बढ़ते दबाव को देखते हुए अब वह इतना तो झुकी है कि कृषि कानूनों में कुछ संशोधनों पर विचार के लिए तैयार हो गई है। मगर किसान चाहते हैं कि सरकार कानूनों को रद्द करे। आंदोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर सुधारों को जायज ठहराते हुए कहा है कि सरकार की नीति और नीयत दोनों से किसानों का हित चाहते हैं, सुधारों का सबसे ज्यादा फायदा उन्हीं को होगा। उन्होंने कहा कि किसानों को जितना सपोर्ट मिलेगा, हम जितना इन्वेस्ट करेंगे, उतना किसान और देश मजबूत होगा।

सरकार नीयत और नीति से किसानों का हित चाहती है। आज भारत का एग्रीकल्चर सेक्टर पहले से ज्यादा वाइब्रेंट हुआ है। आज किसानों के पास मंडियों के बाहर बेचने का भी ऑप्शन भी है। वे डिजिटल माध्यम पर भी खरीद-बिक्री कर सकते हैं। किसान समृद्ध होगा तो देश समृद्ध होगा। जितना हमारे देश में एग्रीकल्चर में प्राइवेट सेक्टर को निवेश करना था, उतना नहीं हुआ। बहरहाल, प्रधानमंत्री अगर बार-बार कानूनों को लेकर सरकार का रुख स्पष्ट कर रहे हैं, तो उनकी बात को गंभीरता से लेना चाहिए। सरकार किसी एक को फायदा पहुंचाने कानून नहीं बनाती। कानून को लेकर जो भी अफवाहें फैलाई जा रही हैं, वह सही नहीं है। कानून पूरे देश के लिए समान है और जैसा कि सरकार कह रही है कि इससे किसानों को फायदा होगा तो एक बार इसे स्वीकार करना चाहिए। अभी कानून बनने के बाद कोई भी फसल तैयार नहीं हुई है। एक खरीद सीजन बीतने के बाद कानून पर राय बनानी होगी।

संतोष की बात तो यह है कि किसानों का आंदोलन अब तक शांतिपूर्ण रहा है। हालांकि दिल्ली से लगी सीमाओं पर सडक़ों एवं राजमार्गों पर किसानों के डेरा डालने से लोगों को जाम से दो चार होना पड़ रहा है। व्यापारियों के लिए माल की आवाजाही का संकट खड़ा होने लगा है। जिस भारी संख्या में किसान सडक़ों पर हैं, उसमें कोरोना संक्रमण फैलने का भी बड़ा खतरा है, जिसकी गंभीरता को कोई नहीं समझ नहीं रहा। आज सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही एक दूसरे पर किसानों को भ्रमित करने का आरोप लगा रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि आजादी के बाद से अब तक सत्ता में चाहे किसी भी दल की सरकार रही हो, किसानों की हालत में सुधार नहीं आया।

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