तीन तलाक: एक कुप्रथा का अंत

मुस्लिम महिलाओं की अग्रिम खुशी और जश्ने-आजादी की वजह संसद से तीन तलाक संबंधी बिल को मंजूरी मिलना है। इससे अब उन्हें एक साथ तीन तलाक (तलाक़-ए-बिद्दत) की बरसों से चली आ रही इस कुप्रथा से निजात मिल जाएगी
तीन तलाक के बिल को मंजूरी
तीन तलाक के बिल को मंजूरी संपादित तस्वीर

राज एक्सप्रेस, भोपाल। इसमें कोई दो राय नहीं कि, कुरान पाक में एक साथ तीन तलाक का कोई वर्णन नहीं है। सूरह बकरा और निसा में आई कई आयतों के अलावा पूरी सूरह तलाक में इससे संबंधित स्पष्ट निर्देश हैं। कुरान शरीफ में स्पष्ट उल्लेख है कि, तलाक से पहले दोनों पक्षों के परिवार वालों को शामिल करके समझौता कराने, बिस्तर अलग करने और चेतावनी देने जैसे कई उपाय अपनाएं जाने चाहिए।

बकरीद और 15 अगस्त में अभी चंद दिन शेष हैं, लेकिन मुस्लिम महिलाओं को अभी से इन दोनों त्यौहारों की खुशियां एक साथ नसीब हो गई हैं। उनकी अग्रिम खुशी और जश्ने-आजादी की वजह संसद से तीन तलाक संबंधी बिल को मंजूरी मिलना है। इससे अब उन्हें एक साथ तीन तलाक (तलाक़-ए-बिद्दत) की बरसों से चली आ रही इस कुप्रथा से निजात मिल जाएगी। असल में दोबारा सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने नई संसद की नई शुरुआत एक समाजिक कुरीति को दूर करने की नेक नीयत से की थी। केंद्र की मोदी सरकार ने लोकसभा में पहला विधेयक तीन तलाक से संबंधित मुस्लिम महिला यानी विवाह अधिकार संरक्षण ही पेश किया। जाहिर है कि, यह बिल उसकी प्राथमिकताओं में शुमार था। लोकसभा में अधिक संख्या बल के कारण सरकार को पहली बाधा दूर करने में पिछली बार की तरह कोई दुश्वारी नहीं हुई और इसे उसने संसद के निचले सदन से गत 25 जुलाई को ही पारित करवाने में सफलता अर्जित कर ली थी। अलबत्ता बहुमत न होने के कारण उसकी असल अग्नि परीक्षा बिल को उच्च सदन से पारित करवाना थी। अंतत: मोदी सरकार ने इसे राज्यसभा से भी 84 के मुकाबले 99 वोटों से मंजूरी दिलाने में सफलता हासिल कर ली।

गौरतलब है कि, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली पिछली एनडीए सरकार ने इसे दिसंबर 2017 और दिसंबर 2018 में ही लोकसभा से पारित करवाकर आधी सफलता पहले ही हासिल कर ली थी लेकिन राज्यसभा में बहुमत नहीं होने के कारण इसे संसद की स्वीकृति नहीं मिल सकी थी। फिर पिछली लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के कारण यह विधेयक स्वत: ही निरस्त हो गया। तब से यह अध्यादेश के रूप में लागू था। दरअसल, अगस्त 2017 में उच्च्तम न्यायालय की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में एक साथ तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया गया था। 3-2 के मुकाबले आए इस फैसले में बस तत्कालीन मुख्य न्यायधीश जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर का इस मामले में मत भिन्न था। उन्होंने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत इसे संवैधानिक संरक्षण प्राप्त होने की बात तो की थी, लेकिन तलाक़-ए-बिद्दत से निपटने के लिए उन्होंने भी संसद के जरिए उचित कानून बनाए जाने की वकालत की थी।

पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ के सभी जज इसके खिलाफ संसद के जरिए कानून पारित कराने को लेकर एकमत थे। ऐसे में भाजपा सरकार ने इस पर विधेयक पारित करा कर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन किया है। असल में तीन तलाक से संबंधित इस बिल पर सरकार की नीयत पहले से साफ थी, इसीलिए विपक्ष द्वारा उठाई जा रही आपत्तियों को उसने काफी हद तक दूर करने की कोशिश की। नई संसद में भी विधेयक पर स्वस्थ बहस कर किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने की बजाए विपक्ष इस पर केवल राजनीति करता रहा। केवल मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के चलते इसमें रोड़े अटकाता रहा। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में इसे पेश करते हुए यह कहा था कि, अध्यादेश लागू होने के बावजूद एक साथ तीन तलाक की कुप्रथा बदस्तूर जारी है और इसके 229 मामले संज्ञान में आ चुके हैं। काबिलेजिक्र है कि, यह मामले तब सामने आए हैं जब इसे विपक्ष द्वारा काफी कठोर कानून करार दिया जा रहा था।

ऐसे में कानून में नरमी लाने के बाद स्थिति क्या होती, इसका अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है। इसके बावजूद रवि शंकर प्रसाद ने लोकसभा में विपक्ष को भरोसा दिलाया कि, उनके जरिए उठाई गई पूर्व की आपत्तियों को दूर कर लिया गया है। अब इसमें दोषी को जमानत देने और समझौते जैसी गुंजाइश रखी गई है। सरकार की मंशा साफ होने के बावजूद मुस्लिम नेताओं और उलेमाओं ने इस पर किसी तरह का दखल न बर्दाश्त करने और केवल कुरान व शरीयत का आदेश मानने की बात कहींं, जबकि सर्वविदित है कि, इसका कुरान व शरीयत में कोई वर्णन नहीं है। इस्लाम मजहब में वैसे ही निकाह को खानदान की इब्तेदा कहा गया है। यही नहीं इस्लाम में शादी को एक खूबसूरत एहसास करार दिया गया है। ऐसे में भला एक खूबसूरत इब्तेदा को बदनुमा इंतेहा तक पहुंचाने की इस्लाम अनुमति कैसे दे सकता है?

इसमें कोई दो राय नहीं कि, कुरान पाक में एक साथ तीन तलाक का कोई वर्णन नहीं है। सूरह बकरा और निसा में आई कई आयतों के अलावा पूरी सूरह तलाक में इससे संबंधित स्पष्ट निर्देश हैं। इसके लिए बाकायदा एक समयावधि, जिसमें औरतों के तीन तोहर यानी मासिक धर्म की तीन मियाद के साथ-साथ गवाहों तक का प्रावधान है। अर्थात यह तीन चरणों में पूरा होता है। कुरान शरीफ में स्पष्ट उल्लेख है कि, तलाक से पहले दोनों पक्षों के परिवार वालों को शामिल करके समझौता कराने, बिस्तर अलग करने और चेतावनी देने जैसे कई उपाय अपनाए जाने चाहिए। इसके बावजूद अगर शादी एक खुशनुमा एहसास के बजाए बदनुमा रिश्ता बन जाए तब तलाक का विकल्प आता है। अर्थात जब एक-दूसरे के जिंदगी जीना मुहाल लगने लगे तब इस्लाम ने दोनों को अलग होने की इजाजत दी है। उसमें भी औरत के गर्भवती होने पर उसे घर से नहीं निकालने और मेहर अदा करके उचित तरीके से विदाई का प्रावधान है। इस तरह से देखा जाए तो ये अत्यंत विपरीत परिस्तिथियों में दी गई एक सहूलत है। फिर जाने कैसे एक साथ तीन तलाक की कुप्रथा भारतीय उपमहाद्वीप में चल पड़ी? जाहिर है कि, ये ऐसी समाजिक कुरीति है जो पितृ-सत्ता सोच से प्रेरित है, इसलिए इसे समाप्त करने की हर कोशिश का स्वागत किया जाना चाहिए।

हालांकि, इधर समाज में ऐसे कई उदाहरण देखने में आ रहे हैं, जहां दहेज कानूनों को महज आपसी झगड़े का बदला लेने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में इस बात का अंदेशा है कि, मुस्लिम महिला विवाह काननू का भी कहीं गलत इस्तेमाल न होने लगे। इसमें पुरुषों को वर्षो तक कानून की जटिल प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है, फिर हमारे देश में न्याय मिलने में जिस तरह देरी होती है, उससे इस तरह के मामले सामने आने से न्यायपालिका पर अतिरिक्त बोझ पड़ने की पूरी संभावना है। ऐसे में बेहतर होता कि, बिल को पारित कराने से पूर्व इसपर भी मंथन कर लिया जाता। अलबत्ता हर चीज के दो पहलू की तरह इसमें भी अच्छाइयों के साथ-साथ कुछ विसंगतियों की संभावना हो सकती है, लेकिन महज इस डर से अमानवीय सामाजिक कुप्रथा को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं है।

भारत में तलाकशुदा महिलाओं में 68 फीसदी हिंदू व 23.3 फीसदी मुस्लिम हैं। मुसलमानों में तलाक का तरीका ट्रिपल तलाक को ही समझ लिया गया है, हालांकि ट्रिपल तलाक से होने वाले तलाक का प्रतिशत बहुत कम है। बहरहाल, अब कानून बनने के बाद आम लोगों में इस्लाम की सही समझ बढ़ेगी और भ्रांतियां दूर होंगी और मुस्लिम समाज की महिलाओं को हक भी मिल सकेगा। इस कानून से सभी महिलाओं को समाज दर्जा भी मिलेगा।

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