दिल्ली और पटना एम्स में बच्चों पर हो रहे कोरोना वैक्सीन के ट्रायल

बच्चों की वैक्सीन के लिए चल रहे ट्रायल में डॉक्टरों ने अपने बच्चों को भी शामिल किया है। यह इस बात का उदाहरण है कि वैक्सीन को लेकर लोगों में जो डर है, उसे दूर किया जाए।
दिल्ली और पटना एम्स में बच्चों पर हो रहे कोरोना वैक्सीन के ट्रायल
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कोरोना से बचाव का एकमात्र तरीका वैक्सीन है। यह दुनिया के सभी देश मान रहे हैं। मगर भारत में आज भी कई लोग कोरोना की वैक्सीन लगवाने से भी हिचक रहे हैं। बहाने बना रहे हैं या झूठ बोल रहे हैं। उन्हें डर है कि कहीं वैक्सीन लगाने से मर गए तो क्या होगा। माना कि कुछ लोगों की मौत वैक्सीन लगाने के बाद हुई, मगर आज तक यह प्रमाणित नहीं हो सका कि मौत का कारण सिर्फ वैक्सीन रही। वैक्सीन को लेकर फैली भ्रांतियों और डर को दूर भगाने का सबसे बड़ा उदाहरण पटना एम्स में देखने को मिला है। पिछले एक हफ्ते से दिल्ली और पटना एम्स में बच्चों पर कोरोना वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है। पटना एम्स में पहले स्टेज के ट्रायल में 12 से 18 साल के जिन 27 बच्चों को शामिल किया गया है, उनमें 40 फीसदी बच्चे डॉक्टरों के हैं। इनमें चार बच्चे तो एम्स के ही डॉक्टरों के हैं। खगौल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. कल्पना ने अपने तीनों बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल कराया। पिछले साल वे खुद भी डॉक्टरों ट्रायल में शामिल हुई थीं।

वहीं एम्स की बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी की हेड डॉ. वीणा ने 13 साल के बेटे सत्यम सिंह को ट्रायल में शामिल कराया। दूसरे चरण के ट्रायल में वे 7 साल के दूसरे बेटे सम्यक को भी शामिल कराएंगी। इसके लिए जल्द ही स्क्रीनिंग होगी। डॉ. वीणा ने भी खुद पर एम्स में ही पिछले साल को-वैक्सीन का ट्रायल कराया था। इसके अलावा एम्स की ही पैथोलॉजी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मीनाक्षी तिवारी ने अपनी14 साल की बेटी अनुभूति शर्मा को ट्रायल में शामिल कराया है। पटना एस में बच्चों पर को-वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है। 12 से 18 साल के 27 बच्चों पर पहले डोज का ट्रायल हो चुका है। इन्हें अब 28 दिन के बाद दूसरा डोज दिया जाएगा। एम्स में दूसरे स्टेज यानी 6 से 12 साल के बच्चों पर ट्रायल के लिए स्क्रीनिंग शुरू हो गई है। एम्स के 5 डॉक्टर भी इसके लिए अपने बच्चों की स्क्रीनिंग करवाने वाले हैं। करीब 25 बच्चों पर दूसरे स्टेज का ट्रायल एक सप्ताह में हो जाने की उम्मीद है। उसके बाद 2 से 6 साल के बच्चों पर ट्रायल शुरू होगा। इसमें भी एक सप्ताह का समय लगेगा।

पटना और दिल्ली के डॉक्टरों के साथ जिन लोगों ने अपने बच्चों को ट्रायल के लिए आगे किया है, वे प्रशंसा के पात्र हैं। हो सकता है कि इसके बाद उन लोगों की भी आंखें खुलें जो डर के मारे घरों में बैठे हैं और कोरोना के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं। इस बात से कोई इंकार नहीं करेगा कि बच्चों पर महामारी का खतरा कहीं ज्यादा बड़ा है। इसीलिए टीके बनाने के लिए कंपनियां जुटी हैं। दूसरी लहर में जैसी तबाही हुई, उसका सबक यही है कि पूरी आबादी को टीका जल्द से जल्द लग जाए। इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि दूसरी लहर में रोजाना संक्रमण और मौतों के आंकड़ों ने सारे रिकार्ड तोड़ डाले। महामारी का खतरा अभी जस का तस है। फिलहाल बस संक्रमण की दर ही घटी है।

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