नए कश्मीर का सपना साकार

देश के अधिकृत कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35 ए के प्रावधानों के बाद अब कश्मीर की नई तस्वीर क्या होगी? क्या होंगे नए बदलाव ?
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राज एक्सप्रेस। नरेंद्र मोदी सरकार ने पांच अगस्त को 72 साल पुराना इतिहास बदलकर अनुच्छेद 370 और 35ए के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधानों को खत्म करने का ऐलान किया था। पुनर्गठन की बड़ी दलील अमन बहाली दी गई है। केंद्र ने आतंकवाद, अलगाववाद और भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए पुनर्गठन को कारगर फार्मूला करार दिया है। अब देखना होगा कि अशांत रहने वाली घाटी को सुकून नसीब होता है या नहीं।

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के साथ प्रशासनिक और अन्य विभागीय स्तर पर व्यवस्थाओं में बदलाव आएगा। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 106 केंद्रीय कानून सीधे तौर पर लागू हो जाएंगे। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पुलिस महकमे में सीआरपीसी के तहत मामले दर्ज होंगे। इससे पहले आरपीसी के तहत यह व्यवस्था थी। मगर इससे ज्यादा सरकार को वहां के लोगों के अधिकारों की ही चिंता करनी होगी, जो आतंकी और दहशतगर्द रौंदा करते हैं। मिजोरम और गोवा की तर्ज पर पुलिस प्रशासन की व्यवस्थाओं में बदलाव होगा। केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए कर्मचारियों की कमी बनी है, जिससे जम्मू-कश्मीर से कर्मचारियों को भेजा जाएगा। इसके अलावा पर्यटन, विद्युत ऊर्जा, बागवानी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। अब पुनर्गठन के बाद वजूद में आए नए जम्मू-कश्मीर में दशकों से नागरिकता को तरस रहे लाखों लोगों को नई जिंदगी मिलेगी। वेस्ट पाकिस्तानी रिफ्यूजी, वाल्मीकि समाज और गोरखा, दूसरे राज्यों में ब्याही गई जम्मू-कश्मीर की बेटियों को शादी के बाद भी तमाम अधिकार मिलेंगे।

जम्मू-कश्मीर में पहले 35-ए लागू था जिसके तहत यहां की बेटियों की शादी दूसरे राज्य में होने से उन्हें नागरिकता खोनी पड़ती थी। वह अपने स्टेट सब्जेक्ट (नागरिकता प्रमाण पत्र) का इस्तेमाल करके जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने या फिर पैतृक संपत्ति से हक खो बैठती थीं। जम्मू-कश्मीर में स्टेट सब्जेक्ट की अनिवार्यता और कानून अब दोनों खत्म हो गए हैं। पीओजेके रिफ्यूजी कैप्टन युद्धवीर सिंह चिब का कहना है कि अनुच्छेद-370 और 35 (ए) से जम्मू-कश्मीर के लोग पहले ही बहुत परेशानी झेल चुके हैं। इसके हटने से उन्हें नई जिंदगी मिली है। जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से कभी भी रिफ्यूजियों के लिए नहीं सोचा गया। यहां पर रिफ्यूजियों की चौथी पीढ़ी तक जन्म ले चुकी है पर वो आज भी यहां के नागरिक नहीं बन पाए हैं। भारत के दूसरे राज्यों में बसे रिफ्यूजियों को नागरिकता के साथ-साथ सभी हक भी मिल चुके हैं। अब यहां भी सारे हक मिलने की उम्मीद है। अनुच्छेद-370 और 35 (ए) का फायदा तो था पर इसके हटने से कोई दु:ख भी नहीं है। जो सुविधाएं कश्मीर से विस्थापित लोगों को मिलती हैं वो पीओके रिफ्यूजियों को नहीं दी गई। पीओके रिफ्यूजियों को स्टेट स्बजेक्ट तो दे दिए गए पर स्थायी रूप से पुनर्वास नहीं किया गया। सरकार एक दिन पीओके वापसी का भरोसा देती है, जो गलत है। इसी वजह से पीओके रिफ्यूजी न तो पहले खुश थे न आज दु:खी हैं।

नए कश्मीर का सपना साकार होने से सिर्फ आम जनता को ही नहीं, बल्कि सरकारी खजाने को भी फायदा पहुंचेगा। नए जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय फंडिंग की पाई-पाई का हिसाब होगा। पुनर्गठन के बाद केंद्र शासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर में लेफ्टिनेंट गर्वनर पद पर सर्विग ब्यूरोक्रेट की नियुक्ति इस ओर इशारा करती है। जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर पद के लिए चुने गए गिरीश चंद्र मुमरू वर्तमान में एक्सपेंडिचर सेक्रेटरी के पद पर आसीन थे। उन्हें खर्चे के हिसाब किताब से जुड़ी योजनाओं को सख्ती से लागू करने की महारत है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को ब्लैकमेलिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। यहां की पॉलिटिकल क्लास हालात को मैनेज करने के लिए केंद्र से पैसा तो लेती थी, लेकिन इसका धरातल पर अमल नजर नहीं आता था। पिछले एक वर्ष में हिमाचल प्रदेश ने कैपिटल एक्सपेंडिचर (आधारभूत ढांचे पर खर्च) की मद में चार हजार करोड़ रुपए खर्च किए, जबकि जम्मू-कश्मीर में 20 हजार करोड़ का खर्च दर्शाया गया। जम्मू-कश्मीर में घर-मकान और वाहनों की संख्या हिमाचल प्रदेश के समान या उससे अधिक है, जबकि रोड कनेक्टिविटी में हिमाचल प्रदेश जम्मू-कश्मीर से पांच गुना आगे है। बिजली उत्पादन क्षेत्र में भी हिमाचल प्रदेश ने कहीं बेहतर काम किया है।

यह आंकड़े दर्शाते हैं कि जम्मू-कश्मीर में केंद्रीय फंडिंग का कभी कोई अभाव नहीं रहा है। मामला सिर्फ खर्च के हिसाब का है, जिस पर नए जम्मू-कश्मीर में नजर रखी जाएगी। प्रो. दीपांकर के अनुसार फंडिंग के खुर्दबुर्द वाले प्रदेश में किसी एक्सपेंडिचर सचिव को प्रशासनिक कमान देने के पीछे व्यवस्था के आमूलचूल परिवर्तन की मंशा नजर आती है। बहरहाल, अब अंग्रेजों के साथ महाराजा गुलाब सिंह की वर्ष 1846 में हुई अमृतसर संधि के बाद जम्मू-कश्मीर का भूगोल अधिकृत रूप से पहली बार बदलेगा। जम्मू-कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है वह आज भी भारत का अभिन्न हिस्सा है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर के नक्शे में पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर यानी पीओजेके और गिलगित और बाल्टिस्तान भी शामिल हैं। लेकिन दो केंद्र शासित प्रदेश बनने से पहली बार जम्मू-कश्मीर का नक्शे में भी विभाजन हो जाएगा। वर्ष 1947 में जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय होने के दौरान महाराजा की रियासत के अधीन कहे जाने वाले छितरल जिले (महतार आफ छितराल) को पाकिस्तान ने खैबर पख्तूनख्वा में मिला लिया। ऐसे में इसे महाराजा की रियासत से अलग मान लिया गया। लेकिन अधिकृत रूप से जम्मू-कश्मीर के नक्शे में 173 वर्ष बाद पहली मर्तबा बदलाव होगा।

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केंद्रशासित प्रदेश देश के पहले गृहमंत्री और 560 से ज्यादा रियासतों का विलय करने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के मौके पर वजूद में आए हैं। अब देश में कुल राज्य 28 रह जाएंगे, जबकि कुल केंद्रशासित प्रदेशों की संख्या नौ हो गई है। यह पहली बार है जब किसी राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटा गया है। नए जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 107 सदस्य हैं, जिनकी परिसीमन के बाद संख्या बढ़कर 114 तक हो जाएगी। वहीं, विधायिका में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के लिए पहले की तरह ही 24 सीट रिक्त रखी जाएंगी। हालांकि, केंद्र सरकार ने यह साफ कर चुकी है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र में मौजूदा साढ़े तीन लाख सरकारी कर्मचारी आने वाले कुछ माह तक मौजूदा व्यवस्था के तहत ही काम करते रहेंगे।

गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने पांच अगस्त को 72 साल पुराना इतिहास बदलकर अनुच्छेद 370 और 35ए के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधानों को खत्म करने का ऐलान किया था। इसके मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में पुड्डुचेरी जैसी विधायिका होगी, जबकि लद्दाख बिना विधायिका के चंडीगढ़ जैसा होगा। राज्य पुनर्गठन की सबसे बड़ी दलील अमन बहाली दी गई है। केंद्र सरकार ने आतंकवाद, अलगाववाद और भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए पुनर्गठन को कारगर फार्मूला करार दिया है। अब यह देखना होगा कि अशांत रहने वाली घाटी और उसका प्रतीक केंद्र डल झील को स्थायी रूप से सुकून नसीब हो पाता है या नहीं। या फिर सरकार ने जो तय किया है, वह पूरा हो जाएगा।

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