मध्यप्रदेश की सत्ता का भविष्य तय करने वाले 19 जिलों की 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए मंगलवार को मतदान हो चुका है। 63 लाख से ज्यादा मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। अब 10 नवंबर को तय हो जाएगा कि प्रदेश में कमल की सरकार बरकरार रहेगी या कमलनाथ को ताज मिलेगा। उपचुनाव में शिवराज सरकार के 34 में से 40 फीसद मंत्रियों का भविष्य दांव पर है। दो पूर्व मंत्रियों (गोविंद सिंह राजपूत और तुलसीराम सिलावट) को छह माह में विधायक नहीं बन पाने के संवैधानिक प्रविधान की वजह से इस्तीफा देना पड़ा, वे मैदान में हैं। साथ ही 12 गैर विधायक मंत्री भी चुनाव मैदान में हैं। उपचुनाव के नतीजों से इन सभी का राजनीतिक भविष्य तय होगा। दरअसल, इन सभी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ी थी और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। सत्ता का समीकरण साधने के लिए भाजपा ने 14 पूर्व विधायकों को मंत्री बनाया और ये सभी चुनाव लड़ रहे हैं।
नतीजों के बाद सत्ता का जो गणित होगा, उसके अनुसार विधानसभा की कुल सीट-229 होगी। वैसे सदस्य संख्या 230 है, मगर राहुल लोधी के इस्तीफे के बाद संख्या फिर एक कम हो गई है। मौजूदा दलीय स्थिति भाजपा-107 सीट कांग्रेस-87 बसपा-दो सपा-एक निर्दलीय- चार-उपचुनाव के परिणाम आने के बाद बहुमत का निर्धारण 229 सीटों के आधार पर होगा। 115 विधायक जिसके साथ होंगे, उसका बहुमत होगा। भाजपा की मौजूदा सदस्य संख्या 107 है और उसे बहुमत के लिए आठ और विधायकों की जरूरत है। कांग्रेस की मौजूदा सदस्य संख्या 87 के हिसाब से सभी 28 सीटें जीतने पर बहुमत का आंकड़ा हासिल होगा। कांग्रेस यदि 21 सीटें जीत लेती है तो बसपा, सपा और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से बहुमत के लिए जरूरी संख्या जुटा सकती है। कांग्रेस की 21 से कम सीटें आने पर साा में वापसी तभी संभव हो पाएगी, जब वह भाजपा विधायकों को अपने पाले में करके उनके इस्तीफे कराए। भाजपा को आठ से कम सीटें मिलने पर अन्य दलों के भरोसे रहना होगा। अभी बसपा, सपा और निर्दलीय विधायक शिवराज सरकार का समर्थन कर रहे हैं।
वैसे उपचुनाव के प्रचार के दौरान विवादों और आरोप-प्रत्यारोपों के चलते प्रदेश में राजनीतिक दलों के बीच बढ़ी कटुता भी लंबे समय तक याद रहेगी। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के समय पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस का प्रमुख चेहरा थे। कांग्रेस के सभी वरिष्ठ एक मंच पर दिखे और पार्टी ने 15 साल बाद प्रदेश की सत्ता में वापसी की। इसके बाद सिंधिया की नाराजगी और 22 समर्थक विधायकों के साथ उनके भाजपा में शामिल होने से विधानसभा में सदस्यों के अंकगणित का जोड़-घटाव कांग्रेस के खिलाफ गया। भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार बनाई और अब 10 नवंबर को उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे कि प्रदेश की बागडोर किसके हाथ में रहेगी।
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