हाइलाइट्स :
Lambda Variant कितना खतरनाक?
SARS-CoV-2 Lambda Variant क्या है?
भारत के लिए चिंता का सबब वाली बात क्यों?
राज एक्सप्रेस। साल 2019 में कोरोना वायरस जैसी कहर बरपाने वाली महामारी कोविड-19 के कई स्वरूप पता चल रहे हैं। डेल्टा और डेल्टा प्लस के बाद अब इसका नया वैरिएंट लैम्ब्डा सामने आया है। जानिये यह क्या है और इससे सतर्क रहने की जरूरत क्यों है।
इसकी वंशावली :
SARS-CoV-2 लैम्ब्डा वैरिएंट को C.37 वंशावली के रूप में भी जाना जाता है। यह सार्स-कोव-2 (SARS-CoV-2) का ही एक प्रकार (variant) है। यह वह वायरस है जो कोविड-19 (COVID-19) के कारण जन्मता है।
इसका पहचान पहली बार पेरू में दिसंबर 2020 में हुई। इसके बाद हाल ही में 14 जून 2021 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे लैम्ब्डा वैरिएंट नाम की पहचान दी। इसे वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट के रूप में नामित किया गया है।
कोरोना तेरे रूप अनेक :
अय्यार कोरोना के नित नये रूप सामने आ रहे हैं। कोरोना के नये चेहरे बेहद खौफनाक साबित हो रहे हैं। पहले डेल्टा फिर डेल्टा प्लस के बाद अब लैम्ब्डा वैरिएंट के रौद्र रूप से दुनिया चिंतित है।
कुल मिलाकर 29 देशों में सार्स-कोव-2 लैम्ब्डा वैरिएंट (SARS-CoV-2 Lambda variant) दस्तक दे चुका है। इससे ग्रसित लोगों के आंकड़ों में तेजी से इजाफा हो रहा है।
इस साल मार्च-अप्रैल के दौरान इस वैरिएंट से ग्रस्त लोगों की तादाद बढ़ने के बाद 14 जून को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने इस वैरिएंट को ‘वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’की श्रेणी में शामिल कर लिया। WHO के मान से दुनिया भर में एक बार फिर तेजी से बढ़ रहे कोरोना संक्रमितों के मामलों के पीछे लैम्ब्डा वैरिएंट का ही अहम रोल है।
लैम्ब्डा वैरिएंट आखिर क्या बला है है? इससे कितना सचेत रहने की जरूरत है? और आखिर क्यों इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट की सूची में शामिल किया है? इन सवालों के जवाब कुछ इस तरह हैं।
SARS-CoV-2 Lambda variant क्या है?
जिस तरह प्रत्येक प्राणी में चाहे वो जुड़वा ही क्यों न हो कि, आदत, प्रकृति-प्रकार में कुछ अंतर होते हैं ठीक उसी तरह वायरस भी पहचान रखता है। वायरस भी अपने वजूद को कायम रखने के लिए अपने जीनोम (संरचना) में बदलाव करने में सक्षम है। वायरस की मूल संरचना में होने वाले बदलावों की प्रक्रिया को ही म्यूटेशन कहा जाता है।
वायरस में होने वाले बदलावों के बाद सामने आने वाला नया प्रकार ही उसका नया वैरिएंट कहलाता है। अब सार्स-कोव-2 का जो नया रूप सामने आया है उसे ही लैम्ब्डा वैरिएंट (SARS-CoV-2 Lambda variant) कहा जा रहा है। विज्ञान में इसे लैम्ब्डा (C.37) की पहचान प्रदान की गई है।
अमेरिका के पेरू में मिला :
लैम्ब्डा वैरिएंट ने दिसंबर 2020 में ही दक्षिण अमेरिकी देश पेरू में दस्तक दे दी थी। पेरू में इस वायरस प्रकार के मामलों का पता अगस्त 2020 से ही लगना शुरू हो गया था। WHO के मुताबिक पेरू ही इसकी उत्पत्ति का केंद्र है। इसकी भयावहता इस बात से ही समझी जा सकती है कि पेरू में कोरोना प्रभावित कुल मामलों में 80 फीसदी मामले लैम्ब्डा वैरिएंट से ही जुड़े थे।
वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट क्या है?
कोई वायरस कितना खतरनाक है? उस पर कितना ध्यान दिया जाना जरूरी है? यह सब पता लगाने की जाने वाली निगरानी को ही वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट कहा जाता है। खतरनाक साबित हो रहे वायरस के वैरिएंट्स की निगरानी खुद WHO करता है। ऐसे वायरस को वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट की कैटेगरी में रखकर उसकी प्रकृति और मिजाज पर नजर रखी जाती है।
अगर वायरस की स्टडी के बाद पाया जाता है कि वैरिएंट तेजी से फैल रहा है और बहुत संक्रामक है तो उसे ‘वैरिएंट ऑफ कंसर्न’ की कैटेगरी में डाल दिया जाता है। इससे पहले भी वैरिएंट्स की प्रकृति के आधार पर WHO खुद अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा को 'वैरिएंट ऑफ कंसर्न' की कैटेगरी में रख चुका है।
कुछ वैरिएंट ऐसे भी हो सकते हैं जिन्हें न तो वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट में और न ही वैरिएंट ऑफ कंसर्न की कैटेगरी में रखा गया हो। उदाहरण के तौर पर भारत में डेल्टा प्लस वैरिएंट के भी कई केस सामने आए हैं, लेकिन WHO ने अभी तक इस वैरिएंट को किसी भी कैटेगरी में नहीं रखा है।
दूसरे वैरिएंट से कितना अलग लैम्ब्डा वैरिएंट?
कोरोना के अन्य प्रकारों की ही तरह वैज्ञानिक लैम्ब्डा वैरिएंट के मिजाज से भली तरह नावाकिफ हैं। मतलब इसकी प्रकृति और असर के बारे में फिलहाल बहुत कम जानकारी है। हेल्थ रिपोर्ट्स के मुताबिक इसके भी लक्षण तेज बुखार, सर्दी-खांसी, स्वाद और गंध पहचान करने में कमी आने सरीखे हैं। सांस लेने में परेशानी, बदन दर्द और थकान लगने की भी बात कही जा रही है।
विदेश भ्रमण का परिणाम :
दक्षिण अमेरिका के देश पेरू में इसका पता लगने के बाद से यह वायरस अब तक 29 देशों तक पहुंच चुका है। एक देश से दूसरे देश अंतर राष्ट्रीय यात्रा करने वालों के कारण इसका प्रसार हुआ ऐसा माना जा रहा है।
इसलिए खतरनाक है लैम्ब्डा :
वैज्ञानिकों की जांच में इसके कई रहस्य उजागर हुए हैं। पता चला है कि, लैम्ब्डा वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में 7 अलग-अलग म्यूटेशन हैं। इनमें से एक म्यूटेशन (L452Q) डेल्टा वैरिएंट में मिले म्यूटेशन L452R से काफी मिलता-जुलता है।
साइंस जर्नल ‘सेल’ में प्रकाशित रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है। बताया गया है कि, डेल्टा वैरिएंट के घातक संक्रमण की वजह L452R म्यूटेशन था। इसी तरह L452R से मिलता-जुलता म्यूटेशन लैम्ब्डा में भी मिलने से लैम्ब्डा को घातक माना जा रहा है।
एक रिसर्च स्टडी में पता चला है कि लैम्ब्डा वैरिएंट का स्पाइक प्रोटीन, वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी के असर को कम भी कर सकता है। चिली में हुई एक स्टडी में सामने आया है कि लैम्ब्डा वैरिएंट अल्फा और गामा के मुकाबले ज्यादा घातक है।
एशिया में मात्र इजराइल :
आपको बता दें भारत में लैम्ब्डा वैरिएंट का मामला अभी तक तो सामने नहीं आया है। एशियाई मुल्कों में मात्र इजराइल ही है जहां इसके कुछ मामले पता चले हैं। भारत के लिए भले ही यह राहत की बात हो लेकिन चिंता का सबब इसलिए भी है क्योंकि कोविड-19 के डेल्टा वैरिएंट के कारण लाखों लोगों की मौत हो गई थी।
डिस्क्लेमर : आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स और जारी आंकड़ों पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।
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