दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र 'अमेरिका' का आज नए इतिहास में प्रवेश

अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन बुधवार को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद कई देशों की उम्म्मीदें अमेरिका के साथ नए सिरे से संबंध स्थापित करने की हैं।
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दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका एक नए इतिहास में प्रवेश करने का जा रहा है। 20 जनवरी को जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति के पद की शपथ लेंगे। साथ ही भारतीय मूल की कमला हैरिस उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेंगी, जो इस पद पर आने वाली पहली महिला होंगी। इन हालात में, डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्म्मीदवार जो बाइडेन द्वारा भारत का समर्थन सिर्फ स्वागतयोग्य कदम से कुछ अधिक ही है। पिछले सप्ताह भारतीय अमेरिकी समुदाय के लिए अपनी टिप्पणी में उन्होंने कहा, मैं हमेशा भारत के साथ खड़ा रहूंगा और इसके अपनी सीमाओं पर सामना कर रहे खतरों में इसका साथ दूंगा। भले ही उन्होंने पूर्वी लद्दाख में टकराव का जिक्र नहीं किया हो, लेकिन सीमाओं पर भारत की स्थिति के लिए उनका आम समर्थन भरोसा जगाता है और अगर वो नवंबर में अमेरिका के अगले राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो अमेरिकी नीति में एक नया आयाम ला सकता है।

विदेश नीति के अनुसार, बाइडेन पहले से ही एक काबिल टीम बना चुके हैं, जिसमें 20 भारतीयों को जगह दी गई है। बाइडेन की विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विदेश नीति पर कुछ ज्यादा विवादास्पद कदमों को वापस लेना होगा। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत की मौजूदा स्थिति का समर्थन भारत-अमेरिका संबंधों में आगे बढऩे का एक बड़ा कदम होगा। 77 वर्षीय बाइडेन अमेरिकी इतिहास के सबसे उम्रदराज राष्ट्रपति होंगे। इससे पहले यह रिकार्ड डोनाल्ड ट्रंप के नाम था, जो 70 वर्ष की उम्र में 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति बने थे। बाइडेन की इस चुनावी जीत के साथ ही डोनाल्ड ट्रंप पिछले तीन दशक के अमेरिकी इतिहास के ऐसे राष्ट्रपति बन गए हैं जो राष्ट्रपति रहते हुए अपना चुनाव हारे हों। इससे पहले 1992 में जॉर्ज बुश सीनियर राष्ट्रपति रहते हुए अपना चुनाव बिल क्लिंटन से हार गए थे। इसके बाद बिल क्लिंटन, जॉर्ज बुश जूनियर और बराक ओबामा ने फिर से चुनाव जीता था। ये तीनों लगातार दो बार चुनाव जीतकर 8-8 वर्ष तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे थे।

अमेरिका के 100 वर्षों के इतिहास में अब तक सिर्फ चार राष्ट्रपति ही ऐसे हुए हैं, जिन्हें अपने दूसरे चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। ट्रंप की चुनावी हार के बाद से ही भारत-अमेरिकी संबंधों को लेकर कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। भारत के अंदर एक बड़ा तबका ट्रंप की हार को नरेंद्र मोदी की हार के तौर पर प्रचारित कर रहा है। यह राजनीतिक आरोप लगाया जा रहा है कि ट्रंप का चुनावी प्रचार करके प्रधानमंत्री मोदी ने जो गलती की थी, उसका खामियाजा अब भारत को उठाना पड़ सकता है। सवाल यह है कि वाकई ऐसा होने जा रहा है? इसका जवाब आने वाले दिनों में मिलेगा। मगर अभी तो यही कहा जा सकता है कि बाइडेन भारत के साथ बैर लेने की स्थिति में नहीं होंगे। अमेरिका को जिस तरह से चीन को काबू में करना है, उसमें भारत से बड़ा मददगार और कोई नहीं हो सकता।

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