जब DRS के फन में माहिर धोनी से वर्ल्ड कप में हुई ये बड़ी चूक

अंपायरों के विवादास्पद निर्णयों पर 1997 में सेनाका वीररत्ना ने DRS का विकल्प सुझाया, 2008 में पहली बार भारत-श्रीलंका मैच में आजमाया, लेकिन 2009 में न्यूज़ीलैंड-पाक टेस्ट मैच में इसे लागू किया गया।
Decision Review System
Decision Review SystemKavita Singh Rathore -RE

राज एक्सप्रेस। ग्राउंड अंपायर के फैसले को चुनौती देने के मामले में विकेट कीपर और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का क्रिकेट के तीनों फॉरमेट्स में सब उनका लोहा मानते है, लेकिन अपने करियर में पहली बार अंपायर डिसीजन रिव्यू सिस्टम (Decision Review System) या फिर DRS पॉवर का उपयोग करते वक्त माही से बड़ी चूक हो गई थी, वो भी वर्ल्ड कप के दौरान।

धोनी से हुई चूक :

दरअसल वनडे फॉरमेट वाले आईसीसी (ICC) विश्व कप 2011 में धोनी यह चूक कर बैठे थे, इंटरनेशनल क्रिकेट में DRS लागू होने के बाद विश्वकप में पहली बार इस नुस्खे को आजमाया जा रहा था, ताकि अंपायर्स के डिसीज़न से मैचों का फैसला प्रभावित न हो। वनडे क्रिकेट वर्ल्ड कप का पहला रेफरल भारत और इंग्लैंड के बीच खेले गए, वनडे मैच की दूसरी इनिंग में लिया गया। मीडियम पेसर श्रीसंत की गेंद पर पगबाधा की अपील फील्ड अंपायर द्वारा खारिज करने पर विकेटकीपर कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने इस निर्णय को चुनौती देने का फैसला लिया था।

धोनी ने क्रिकेट करियर का पहला DRS पॉवर लिया, थर्ड अंपायर ने श्रीसंत की गेंद की कैमरा विज़न में समीक्षा की और ग्राउंड अंपायर के नॉट आउट वाले फैसले को बरकरार रखा। टेलिविज़न अंपायर की पड़ताल के दौरान रिप्ले में गेंद लेग स्टंप को टच करने से चूकती नज़र आ रही थी।

रेफरल के मामले में धोनी की महारत को क्रिकेट एक्सपर्ट्स ने हर वक्त सराहा है। अंतर्राष्ट्रीय लेवल के टेस्ट, वनडे और टी20 क्रिकेट के साथ ही आईपीएल सीज़न में भी धोनी कई दफा अपनी इस काबलियत से मैच का रुख पलट चुके हैं।

धोनी रिव्यू सिस्टम :

भले ही धोनी ने DRS पॉवर के मामले में वर्ल्ड कप जैसे टूर्नामेंट के दौरान अपने क्रिकेट करियर का पहला DRS पॉवर उपयोग करने में बड़ी चूक कर दी हो, लेकिन बाद के मैचों में कमेंटेटर्स ने डिसीज़न रिव्यू सिस्टम यानी DRS की धोनी रिव्यू सिस्टम के तौर पर भी व्याख्या की। ऐसा इसलिए भी क्योंकि धोनी इसके बाद मैच दर मैच परफेक्ट DRS टेकर बनते गए।

अब वर्ल्ड कप में धोनी यह चूक कैसे कर बैठे यक्ष प्रश्न यह है, वो कहते हैं न कि, गलतियों से सीखकर ही हुनर निखरता है। शायद धोनी ने भी अपनी इस ऐतिहासिक गलती से सीख ली होगी, तभी वो बाद में अचूक DRS लेने वाले क्रिकेटर बन पाए।

DRS के बारे में :

अंपायर डिसीज़न रिव्यू सिस्टम (UDRS या DRS) एक तकनीक आधारित प्रणाली है जो क्रिकेट अंपायर्स को निर्णय लेने में मदद करती है। इसमें फील्ड अंपायर्स तीसरे अंपायर से तकनीकी मदद के जरिए निर्णय लेने के मामले में स्वयं अथवा प्लेयर्स के कहने पर सलाह लेते हैं। अंपायर के स्तर पर लिए गए रिव्यू को अंपायर रिव्यू जबकि प्लेयर के रिक्वेस्ट पर थर्ड अंपायर के रिव्यू को प्लेयर रिव्यू कहा जाता है।

परखी जाती हैं ये चीजें :

  • सबसे पहले नो बॉल

  • गेंद की दिशा

  • उछाल

  • गेंद और बल्ले का संपर्क

  • पगबाधा की दशा में गेंद, बल्ले का संपर्क

  • गेंद के स्टंप पर लगने की संभावना

(इसमें तकनीकी तौर पर वीडियो रिप्ले के जरिए आवाज़, गेंद की दिशा, दशा के साथ ही इन्फ्रा रेड इमेजिंग से आउट-नॉट आउट के फैसलों को हर कोण से जांचा-परखा जाता है।)

पहली दफा DRS :

टेस्ट मैचों में DRS का इस्तेमाल प्रायोगिक तौर पर 1992 में शुरू हुआ, लेकिन अधिकृत तौर पर इसकी टेस्ट मैचों में शुरुआत 2009 में हो पाई। वनडे में इसे जनवरी 2011 में लागू किया गया, जबकि, टी20 इंटरनेशनल क्रिकेट में DRS अक्टूबर 2017 में लागू हुआ। गौरतलब है 1997 में सेनाका वीरारत्ना ने फील्ड अंपायरों के विवादास्पद निर्णयों के हल के तौर पर DRS का विकल्प सुझाया था। भारत और श्रीलंका के बीच 2008 में इसे पहली बार आजमाया गया। जबकि इसके बाद 24 नवंबर 2009 को न्यूज़ीलैंड और पाकिस्तान के बीच पहले टेस्ट मैच में इसे अधिकारिक तौर पर लागू किया गया।

DRS खास-खास :

प्रत्येक टीम के पास टेस्ट की प्रत्येक पारियों में DRS के 1 या फिर 2 विकल्प होते हैं। यदि कोई प्लेयर फील्ड अंपायर के फैसले से संतुष्ट नहीं है तो वो हाथों से अंग्रेजी कैपिटल अक्षर 'T' की आकृति दर्शाकर फील्ड अंपायर से थर्ड अंपायर की मदद के जरिए निर्णय की समीक्षा करने की अपील कर सकता है।

यदि थर्ड अंपायर फील्ड अंपायर के आउट वाले फैसले को बरकरार रखता है तो फील्ड अंपायर दोबारा अंगुली उठाकर संबंधित आउट के फैसले को बरकरार रखता है जबकि थर्ड अंपायर के डिसीज़न बदलने पर फील्ड अंपायर को अपने हैंड्स को चेस्ट पर क्रॉस रखकर अंग्रेजी का कैपिटल अक्षर 'X' बनाकर अपने आउट-नॉट आउट के फैसले को बदलना पड़ता है।

फिलहाल DRS समीक्षा के दौर से गुज़र रहा है। तकनीकी निर्णयों पर भी कई दफा अंगुली उठ चुकी है। पगबाधा के फैसलों पर भी DRS कि नियमों में समय-समय पर सुधार किए गए हैं।

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