नंबर 1 टीम इंडिया का गैर पेशेवर रवैया क्यों?

“टेस्ट में नंबर वन भारतीय क्रिकेट टीम में जोड़-तोड़ के देशी नुस्खे अभी भी आजमाए जा रहे हैं। देखकर लगता है जैसे टीम में ओपनर, मध्यक्रम बल्लेबाजों के साथ ही स्थाई विकेट कीपर तक के लिए ऑडिशन चल रहा है।”
नंबर 1 टीम इंडिया का गैर पेशेवर रवैया क्यों
नंबर 1 टीम इंडिया का गैर पेशेवर रवैया क्योंSudha Choubey - RE

हाइलाइट्स :

  • ओपनिंग बल्लेबाज की परेशानी बरकरार

  • मध्यक्रम में तय नहीं हो सका कोई बल्लेबाज

  • काबिल खिलाड़ी रिज़र्व में बैठे, कुछ खास को ही चांस!

  • होनहार विकेटकीपर्स की फौज, फिर क्यों पंत की मौज?

राज एक्सप्रेस। भारतीय क्रिकेट टीम के न्यूजीलैंड में जारी प्रदर्शन को देखकर सवाल उठ रहे हैं क्या टीम इंडिया वाकई टेस्ट रैंकिंग में नंबर वन है? कीवीज़ गेंदबाजों के सामने ओपनर से लेकर मध्यक्रम के बल्लेबाजों ने जिस तरह घुटने टेके उससे टीम का गैर पेशेवर रवैया एक बार फिर जाहिर हो गया। अब जरा टीम की इस पुरानी लाइलाज बीमारी के इतिहास पर गौर फरमाते हैं-

फिसड्डी शुरुआत-

ICC वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के तहत वेलिंग्टन में खेले जा रहे पहले टेस्ट मैच में मेजबान न्यूजीलैंड के गेंदबाजों ने भारतीय बल्लेबाजों की कलई खोलकर रख दी। पहली पारी में ओपनर पृथ्वी शॉ (16), चेतेश्वर पुजारा (11), कप्तान विराट कोहली (2) को मिलाकर कुल 3 बल्लेबाज जब टीम का स्कोर मात्र 40 रन था, पवेलियन लौट गए।

पूरी टीम महज 68.01 ओवर्स में मात्र 165 रनों के कुल योग पर सिमट गई। दूसरी पारी में भी टीम ने प्रमुख चार विकेट महज 40 ओवर्स के भीतर मात्र 113 रनों के कुल योग पर गवां दिए। टीम के इस प्रदर्शन से भारतीय बल्लेबाजों की विदेशी धरती पर नाकामी एक बार फिर उजागर हो गई।

पुराने आंकड़े-

भारतीय पुरुष सीनियर क्रिकेट टीम के ओपनिंग बल्लेबाजी आंकड़ों पर जनवरी साल 2018 से अब तक पर यदि गौर करें, तो स्थिति चिंताजनक नज़र आती है।

भारत पहली पारी (विदेशों में- जनवरी 2018 से)-

जनवरी 2018 : 27/3(8.1) केपटाउन

अगस्त 2018: 59/3(15.5) एजबेस्टन

दिसंबर 2018: 19/3(10.3) एडीलेड दिसंबर 2018

अगस्त 2019: 25/3(7.5) नॉर्थ साउंड

फरवरी 2020: 40/3(17.5) वेलिंग्टन

सुस्त आगाज-

विदेशी धरती पर खेलते हुए भारतीय बल्लेबाजों का रुख काफी सुस्त रहा है।

केपटाउन में दक्षिण अफ्रीका के गेंदबाजों ने इंडियन टीम की इसी कमजोरी को भुनाया था। जहां बल्लेबाज आयाराम-गयाराम की तर्ज पर पवेलियन से बाहर निकलते और फिर अंदर जाते नजर आए थे। यहां टीम के 7 बल्लेबाज मात्र 90 रनों पर आउट हो गए थे।

बर्मिंघम में इंग्लैंड के खिलाफ पहले टेस्ट मैच में भी भारत ने मात्र 100 रनों पर पांच विकेट खोए। यहां कप्तान विराट कोहली ने हार्दिक पांड्या के साथ मिलकर भारत की लुटिया डूबने से किसी तरह बचाई।

एडीलेड में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले टेस्ट में भी भारतीय टीम स्टार्टिंग ट्रबल की परेशानी से जूझती नजर आई। टीम ने 80 रनों पर 5 विकेट खो दिये और टीम कंगारू गेंदबाजों के सामने जूझती नजर आई। पुजारा ने इस मैच में पंत और अश्विन के साथ मिलकर टीम को किसी तरह सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचाया।

वेस्टइंडीज में जहां नई गेंद उतनी अहमियत नहीं रखती वहां भी ओपनिंग बल्लेबाज असहाय दिखे। नॉर्थ साउंड में खेले गए पहले टेस्ट मैच में भारत ने 90 रन पर 4 विकेट खो दिए थे लेकिन अजिंक्य रहाणे और हनुमा विहारी ने किसी तरह भारत की जीत का आधार तय किया।

एडिलेड और नॉर्थ साउंड में तो भारत को किसी तरह वापसी करने में कामयाबी हासिल हो गई थी लेकिन साउथ अफ्रीका और एजबेस्टन में इंग्लैंड के खिलाफ भारत संभावित हार को टाल नहीं पाया।

फिर वही कहानी-

अब न्यूजीलैंड दौरे पर भी भारत की ओपनिंग बल्लेबाजी की समस्या फिर सामने है। एक बार फिर टीम इंडिया ने 100 रनों के भीतर 5 विकेट गवां दिए जिससे टीम के पेशेवर रवैये पर सवाल उठना लाजिमी है।

ओपनर अहम-

क्रिकेट के किसी भी फॉरमेट में किसी भी टीम के लिए ओपनिंग पेयर यानी सलामी बल्लेबाजों की जोड़ी खासी मायने रखती है। यदि सलामी बल्लेबाज बड़ी साझेदारी करते हैं तो टीम को बड़ा स्कोर करने से रोकने में विपक्षी गेंदबाजों को भी खासी मशक्कत करना पड़ती है।

लेकिन ओपनिंग पेयर के सस्ते में आउट होने की स्थिति में बल्लेबाजी ताश के पत्तों की तरह बिखरते देर भी नहीं लगती। न्यूजीलैंड के गेंदबाजों के सामने भारतीय टीम के स्कोरकार्ड को देखकर तो यही लगता है। भारत में जहां गेंद रुककर बल्ले पर आती है, वहां तो भारतीय बल्लेबाज कागजों में शेर हैं, लेकिन विदेशी धरती पर आंकड़ों को देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि, यहां शेर मिट्टी में ढेर हैं।

“न्यूजीलैंड में जारी मौजूदा टेस्ट सीरीज में भारत को यदि ऑस्ट्रेलिया दौरे की तरह वापसी करना है तो नई गेंद के साथ भारतीय गेंदबाजों को कीवीज़ की ही तरह अपनी काबलियत साबित करना होगी। साथ ही बल्लेबाजों को अपनी तकनीक में भी सुधार करना होगा, क्योंकि यहां गेंद भारतीय पिचों की तरह रुककर नहीं आती।”

हर्षा भोगले, क्रिकेट विश्लेषक

आधा दर्जन से अधिक-

साल 2018 से अब तक शिखर धवन, मुरली विजय, पार्थिव पटेल, केएल राहुल, मयंक अग्रवाल, पृथ्वी शॉ और हनुमा विहारी को मिलाकर लगभग आधा दर्जन से अधिक ओपनिंग बल्लेबाज टीम इंडिया ने आजमाए हैं, लेकिन एक भी बल्लेबाज स्थाई ओपनिंग बैट्समैन की पोजिशन पर अपना स्थान बरकरार नहीं रख पाया।

रोहित को कम मौके-

इनमें से राहुल को सबसे ज्यादा 13 टेस्ट मैचों की 23 पारियों में ओपनिंग करने का मौका मिला लेकिन वो भी टीम में अपने स्थान के लिए जूझते नजर आए। एक नाम और है रोहित शर्मा का जिनसे टेस्ट मैच में ओपनिंग कराने की सलाह एक्सपर्ट्स देते रहे हैं। बतौर सलामी बल्लेबाज रोहित डबल सेंचुरी ठोंककर अपनी काबलियत साबित कर चुके हैं, लेकिन उनको भी ओपनिंग बल्लेबाज के तौर पर टेस्ट में ज्यादा मौके नहीं मिल पाए।

कहना गलत नहीं होगा टेस्ट मैच में नंबर वन भारतीय क्रिकेट टीम में जोड़-तोड़ के देशी नुस्खे अभी भी आजमाए जा रहे हैं। देखकर लगता है जैसे टीम में ओपनर, मध्यक्रम बल्लेबाजों के साथ ही स्थाई विकेट कीपर तक के लिए ऑडिशन चल रहा है। लंबे अर्से से टीम मैनेजमेंट ओपनिंग बल्लेबाज और विकेटकीपर तय नहीं कर पाया है, जबकि उसके पास रिज़र्व में तमाम प्रतिभाशाली बल्लेबाजों और विकेटकीपर्स की फौज तैयार है।

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