Lakshadweep vs Maldives: भारत-मालदीव विवाद से चीन को मिल रहा फायदा!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर मालदीव के तीन मंत्रियों की आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद, दोनों देशों के लोगों में घमासन मच गया। अब इसका फायदा चीन को मिलता दिख रहा है।
Summary

हाइलाइट्स:

  • मालदीव में है चीन समर्थक सरकार

  • मालदीव से नजदीकियां बढ़ा रहा चीन

  • भारत के लिए मालदीव से अच्छे संबंध बनाना है जरूरी

मालदीव और भारत के संबंध पिछले कुछ दिनों से चर्चा में है। प्रधानमंत्री मोदी की लक्ष्यद्वीप की तस्वीरों पर, मालदीव के कुछ मंत्रियों की आपत्तिजनक टिप्पणियों के बाद भारत के लोगों का गुस्सा फूट गया। इसके बाद #BoycottMaldives सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर ट्रेंड करने लगा। हालांकि इसके बाद मालदीव की तरफ से भी तुरंत एक्शन लिया गया और आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले मंत्रियों को सस्पेंड कर दिया गया। कई लोग इसे भारत की जीत बता रहे हैं, पर भारत और मालदीव के इस टकराव का फायदा चून को मिलता दिख रहा। मालदीव और भारत के संबंध बिगड़ने से सबसे ज्यादा फायदा चीन को हो सकता है।

मालदीव में है चीन समर्थक सरकार

मालदीव की नवंबर 2023 में आई नवनिर्वाचित सरकार चीन समर्थक है। नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू पहले से ही भारत विरोधी हैं। हालही में प्रेसिडेंट मुइज्जू 5 दिन का चीन दौरा करके आए हैं। मुइज्जू के चीन जाने के बाद ही, उनके मंत्रियों की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी की लक्षद्वीप वाली तस्वीरों पर आपत्तिजनक बयान आए। अपने दौरे में मुइज्जू चीन से मालदीव में ज्यादा-से-ज्यादा पर्यटक भेजने की अपील करते दिखे। कई रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है, कि दोनों देशों के बीच हिंद महासागर आइलैंड में 50 मिलियन यूएस डॉलर के एकीकृत पर्यटन क्षेत्र (Integrated Tourism Zone) को विकसित करने की डील भी हुई है। 2014 में चीन ने मालदीव में 1.37 बिलियन के इंवेस्टमेंट भी किये हैं। आगे 25 बिलियन डॉलर के और निवेश की संभावना है।

मालदीव से नजदीकियां बढ़ाएगा चीन

भारत की तरफ से मालदीव का ज्यादा विरोध करने का फायदा चीन को मिल सकता है। चीन और भारत के संबंधों में हमेशा ही तनाव बने रहते हैं। चीन भारत के करीबी देशों से हमेशा ही अपनी सांठ-गांठ बैठाने की कोशिश में रहता है। वर्तमान स्थिति में भी चीन मालदीव से अपनी नजदीकियां और ज्यादा बढ़ाने का प्रयास करेगा, जिससे वो भारत को घेर सके।

भारत और मालदीव के बीच, यह विवाद इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि यह कोई सियासी विवाद नहीं, बल्कि एक ऐसा विवाद है, जिसमें दोनों देशों के आम लोग शामिल है। इस विवाद के जरिए, चीन मालदीव में अपनी पकड़ और मजबूत करने की कोशिश करेगा। चीन मालदीव की एयरपोर्ट बनाने में मदद कर रहा है। चीन की मदद से मालदीव पहले ही अपने देश में सिनामाले ब्रिज बनवा चुका है। मालदीव चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का का हिस्सा भी पहले से ही है। इस प्रोजेक्ट को चीन ने ग्लोबल कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए शुरू किया था। हालांकि इस प्रोजेक्ट के जरिए, चीन हिंद महासागर में भारत को घेर रहा है।

श्रीलंका और पाकिस्तान के पोर्ट पर श्रीलंका का कंट्रोल

श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर पहले से ही चीन का कंट्रोल है। बांग्लादेश के बंदरगाहों पर भी चीन का काफी प्रभाव है। भारत और मालदीव के वर्तमान संबंधों का फायदा उठाकर, चीन मालदीव के बंदरगाहों पर भी अपना कब्जा कर सकता है। चीन, पाकिस्तान और श्रीलंका की तरह, मालदीव को भी कर्ज देकर, यहां अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर सकता है। इससे भारत और मालदीव के रिश्तों में दूरी आने की संभावना है।

भारत के लिए जरूरी है मालदीव

मालदीव से अच्छे संबंध रखने भारत के लिए फायदेमंद है। दोनों देशों के इतिहास में हमेशा अच्छे संबंध ही रहे हैं। 2021 में एक भारतीय कंपनी एफकॉन्स इन्फ्रास्ट्रक्चर ने मालदीव के महत्वाकांक्षी ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट का जिम्मा लिया था। इसी साल भारत मालदीव का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर भी बना था। मालदीव देश हिंद महासागर में स्थित है, इसलिए शिपिंग के नजरिये से ये भारत के लिए बहुत जरूरी है। चीन हिंद महासागर में लगातार अपनी पहुंच बढ़ा रहा है। इस स्थिति में मालदीव का भी चीन के ही पक्ष में होना, इस इलाके में चीन की पकड़ को और मजबूत करेगा। चीन का हिंद महासागर में होना, भारत की सुरक्षा के लिए भी खतरनाक हो सकता है।

इस स्थिति में भारत के लिए जरूरी है, कि वो किसी विवादों में ना फंसकर, मालदीव के साथ अपने द्विपक्षीय संबंध बनाकर रखें। क्योंकि मालदीव के साथ भारत के संबंध खराब होने का सीधा लाभ चीन को मिलेगा, जोकि भारत के लिए खतरनाक हो सकता है।

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