चीन और सऊदी अरब के बीच का समझौता
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चीन और सऊदी अरब के बीच का समझौता क्या बढ़ा सकता है भारत की मुश्किलें?

जहां एक तरफ चीन और सऊदी की यह दोस्ती बढ़ रही है। तो वहीं विशेषज्ञ इसे भारत के चिंता का कारण भी बता रहे हैं।

राज एक्सप्रेस। इन दिनों चीन और सऊदी अरब के बीच दोस्ती का सिलसिला बढ़ता हुआ नजर आ रहा है। हाल ही में दोनों देशों के बीच कुछ अहम समझौते भी हुए हैं। दरअसल सऊदी क्राउन प्रिंस और प्रधान मंत्री प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान बिन के द्वारा 11 और 12 जून को आयोजित अब्दुलअज़ीज़ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी की गई। यह 10वां अरब-चीन व्यापार सम्मलेन रहा था, जिसका मकसद दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए निवेश को आगे बढ़ाना था। हालांकि जहां एक तरफ चीन और सऊदी की यह दोस्ती बढ़ रही है। तो वहीं विशेषज्ञ इसे भारत के चिंता का कारण भी बता रहे हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कि इस सम्मलेन में क्या हुआ और यह भारत के लिए चिंता का कारण क्यों है?

सम्मलेन में क्या हुआ?

बताया जा रहा है कि 10वें अरब-चीन सम्मलेन के दौरान दोनों देशों के द्वारा करीब 30 इन्वेस्टमेंट समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। सम्मलेन के पहले दिन में ही करीब 10 बिलियन डॉलर की डील को अंजाम दिया गया है। बताया जा रहा है कि इस समझौते के तहत मुख्य रूप से टेक्नोलॉजी, एग्रीकल्चर, रियल एस्टेट, टूरिज्म, नेचुरल एनर्जी सोर्स आदि पर अधिक ध्यान दिया गया है। इसके अलावा सऊदी के निवेश मंत्रालाय की ओर से चीन की एक कार निर्माता कंपनी के साथ करीब 5.6 अरब डॉलर का समझौता भी हुआ है। इस समझौते के अंतर्गत इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण और बिक्री को शामिल किया गया है।

भारत के लिए क्यों है चिंता का कारण?

दरअसल कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि चीन ऐसे देशों के साथ अहम समझौते कर रहा है जिनके भारत के साथ अच्छे संबंध हैं। जो आगे चलकर भारत के लिए चिंता का विषय बन सकता है। जैसे कुछ समय पहले ही जी-20 बैठक में भी सऊदी अरब शामिल नहीं हुआ था। जिसका कारण चीन को माना जाता है। इस लिहाज से अरब के साथ चीन की दोस्ती का बढ़ना भारत के खिलाफ चीन की कोई नई चाल भी हो सकती है। वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि चीन अपनी चाल के माध्यम से भारत के दूसरे देशों के साथ संबंध बिगाड़ने के लिए ऐसा कर रहा है।

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