Holocaust Remembrance Day : जानिए कैसे हिटलर की सेना ने 60 लाख यहूदियों की बेरहमी से हत्या की
राज एक्सप्रेस। हर साल 27 जनवरी का दिन अंतर्राष्ट्रीय प्रलय स्मरण दिवस यानी International Holocaust Remembrance Day के रूप में मनाया जाता है। इसे होलोकॉस्ट डे भी कहा जाता है। इस दिन होलोकॉस्ट के पीड़ितों को याद किया जाता है। बता दें कि होलोकॉस्ट से मतलब यहूदियों के नरसंहार से है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान नाजी जर्मनी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर करीब 60 लाख यहूदियों की सुनियोजित तरीके से हत्या कर दी थी। इन्हीं लोगों की याद में हर साल 27 जनवरी को होलोकॉस्ट डे मनाया जाता है।
कौन थे नाजी?
दरअसल नाजी जर्मनी की एक राजनीतिक पार्टी थी। इसका पूरा नाम नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी था। साल 1921 में एडॉल्फ हिटलर इसका प्रमुख बन गया था। हिटलर और उसके समर्थकों को लगता था कि प्रथम विश्वयुद्ध में यहूदियों के कारण जर्मनी की हार हुई। उस समय जर्मनी की सत्ता और धनाढ्य वर्ग में यहूदियों का वर्चस्व था, नाजियों को यह भी मंजूर नहीं था। साथ ही हिटलर अपनी जाति को सर्वश्रेष्ठ मानता था, वो यहूदियों को बहुत नीचा समझता था। ऐसे कई कारण थे, जिसके चलते नाजियों में यहूदियों के प्रति भारी नफरत थी।
यहूदियों का नरसंहार :
साल 1933 में जब हिटलर जर्मनी की सत्ता पर काबिज हुआ तो उसने यहूदियों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। साल 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने के बाद तो उसने यहूदियों को जड़ से मिटाने की ठान ली। इसके लिए हिटलर ने विशेष कैंप स्थापित किए। यहां उसकी खुफिया एजेंसी के लोग यहूदियों को पकड़कर लाते थे। इन कैम्पों में काम करने वाले लोगों को जिंदा रखा जाता था, जबकि बूढ़े और अपंग लोगों को गैस के चेंबर में डालकर मार दिया जाता।
ऑश्वित्ज सेंटर :
पोलैंड का ऑश्वित्ज हिटलर की हैवानियत का सबसे बड़ा सेंटर था। नाजी खुफिया एजेंसी यूरोप से कई यहूदियों को पकड़कर यहां लेकर आई और उनमें से कई लोगों को गैस चेंबर में डालकर मार दिया गया। काम करने वाले यहूदियों को भी बस नाम मात्र का खाना दिया जाता था। भीषण ठंड में भी कपड़े नहीं दिए जाते। जब वह कमजोर हो जाते तो उन्हें गैस चेंबर में धकेल दिया जाता। इस एक अकेले कैंप में नाजियों ने 11 लाख यहूदियों की हत्या की थी। वहीं द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 6 साल में नाजियों ने 60 लाख यहूदियों को बेरहमी से मार दिया। इनमें से 15 लाख बच्चे थे।
सोवियत संघ ने कराया आजाद :
साल 1945 में सोवियत संघ की सेना ने ऑश्वित्ज पर कब्ज़ा कर लिया। उस समय कैंप में सात हजार कैदी थे। युद्ध में जर्मनी की हार के साथ ही यह सिलसिला भी खत्म हो गया। हालांकि अपनी हार की आशंका को देखते हुए जर्मनी ने पहले ही नरंसहार से जुड़े सबूतों को नष्ट कर दिया था।
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