प्रमोशन में आरक्षण: सरकार ढूंढ रही दूसरे विकल्प

भोपाल, मध्यप्रदेश: बीते दिन प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट का आया था फैसला, अब इस पर सरकार कर्मचारियों की नाराजगी दूर करने के लिए खोजेगी नए उपाय।
प्रमोशन में आरक्षण, सरकार ढूंढ रही दूसरे विकल्प
प्रमोशन में आरक्षण, सरकार ढूंढ रही दूसरे विकल्प Deepika Pal - RE

राज एक्सप्रेस। बीते दिन प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड हाईकोर्ट की याचिका को खारिज करते हुए फैसला सुनाया था कि, एससी और एसटी वर्गों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व के साथ नियुक्ति के लिए राज्य सरकार को आरक्षण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इस पर अब प्रदेश के कर्मचारियों की प्रमोशन और पदोन्नति के निर्णय पर प्रदेश सरकार नए रास्ते निकालेगी जिससे कर्मचारियों की नाराजगी दूर हो सके।

दूसरे विकल्पों पर करेगी सरकार विचार :

बता दें कि मध्यप्रदेश में तकरीबन पौने चार साल से कर्मचारियों की पदोन्नति पर प्रतिबंधित लगा है, जिसमें पूर्व सरकार ने सेवानिवृत्ति की आयु को बढ़ाकर कर्मचारियों को प्रतिबंध से अलग ओर मोड़ने का प्रयास किया था बहरहाल इस मामले में पदोन्नति को लेकर आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट में मामला अब भी लंबित है। वहीं प्रदेश में कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति का समय भी सामने आ रहा है इसमें अब सरकार का लक्ष्य है कि पदोन्नति के नए विकल्प पर विचार किया जाए, ताकि कर्मचारियों को किसी प्रकार की परेशानी न हो।

बड़े पदों पर सौंप सकती है जिम्मेदारी :

बता दें कि, सरकार दूसरे नए विकल्पों में क्रमोन्नति देकर बड़े पदों की जिम्मेदारी सौंप सकती है जिसमें प्रशासनिक सेवा में लगे अधिकारियों के तर्ज पर अन्य कर्मचारियों और अधिकारियों की अंतरिम व्यवस्था होने तक बड़े पदों पर जिम्मेदारी सौंप सकती है।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने आदेश पर लगाई थी रोक:

बता दें कि, चार साल पहले अप्रैल 2016 में मध्यप्रदेश की जबलपुर हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण को लेकर रोक लगाने का आदेश दिया था। जिस पर विरोध प्रदर्शन होने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट भी मामले पर डबल बेंच में एम. नागराज बनाम भारत संघ प्रकरण को आधार बनाकर सुनवाई की थी जिस पर एम. नागराज की चुनौती के बाद मामले को पांच सदस्यीय खंडपीठ भेजा गया था जिसमें पिछले साल 26 सितबंर को निर्णय दिया जिस पर पदोन्नति में आरक्षण को संवैधानिक बाध्यता नहीं है बताया गया। वहीं इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना अभी बाकी है।

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