Online Education: ऑनलाइन क्लास की परेशानियां और उनका समाधान

कई बार स्टूडेंट्स और टीचर्स के बीच सीखने-सिखाने की प्रक्रिया बाधित होती है। कभी स्टूडेंट्स नहीं सुन पाते तो कभी शिक्षक समझा नहीं पाते।
ऑनलाइन एजुकेशन से जुड़ी तकनीकी परेशानियों का यह रहा समाधान।
ऑनलाइन एजुकेशन से जुड़ी तकनीकी परेशानियों का यह रहा समाधान।Syed Dabeer Hussain - RE

हाइलाइट्स –

  • Online Education फायदा/नुकसान

  • पैरेंट्स पर कामकाज और पढ़ाई का बोझ

  • इंटरनेट कनेक्शन स्पीड परेशानी का सबब

  • फीस, कॉपी-किताब संग बढ़ा मोबाइल इंटरनेट खर्च

राज एक्सप्रेस। मैडम आपकी आवाज सुनाई नहीं दे रही, बच्चों अपना स्पीकर ऑफ करो, मम्मा स्कूल वाला लिंक फेल हो गया और फिर अंत में नेटवर्क ऐरर होने पर अभिभावकों से स्कूल वालों का तर्क कि आप स्कूल आ जाइये हम आपकी समस्या का समाधान यहां कर देंगे।

यह बातें ऑनलाइन एजुकेशन (Online Education) के दौरान घरों में आम हो गई हैं। कोरोना महामारी के कारण ऐहतियातन लागू सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से स्टूडेंट्स की स्कूल-कॉलेज से भी दूरी बढ़ गई। ऐसे में इस खाई को पाटने के लिए ऑनलाइन एजुकेशन का विकल्प मददगार साबित हुआ।

पहली समस्या संसाधनों की –

एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में लगभग 78 प्रतिशत स्कूलों में अभी भी इंटरनेट की सुविधा नहीं है और 61 प्रतिशत से अधिक के पास कम्प्यूटर नहीं हैं।

केंद्र सरकार द्वारा 2019-20 के लिए जारी नवीनतम UDISE+ (यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन) डेटा में इस बात की जानकारी दी गई। UDISE डेटा में सरकारी और निजी दोनों स्कूल शामिल हैं।

बजट में अनदेखी -

टीओआई में फरवरी 2021 में प्रकाशित शीतल बंचारिया के आर्टिकल के मुताबिक घोषित बजट 2021 में शिक्षा क्षेत्र को 93,224.31 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। यह आबंटन पिछले वर्ष की तुलना में 6,086.89 करोड़ रुपये कम है।

सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक होने के बावजूद, ऑनलाइन शिक्षा (Online Education) ने पैसे के मामले में सरकार का ध्यान आकर्षित नहीं किया।

बजट के साथ ही ऑनलाइन एवं डिजिटल एजुकेशन प्रोसेस के पारखियों का मानना है, डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा देने पृथक फंड आबंटन, ऑनलाइन कोर्सेज पर जीएसटी कम कर बजट को एजुकेशन फ्रेंडली बनाया जा सकता था।

ऑनलाइन एजुकेशन से जुड़ी तकनीकी परेशानियों का यह रहा समाधान।
बजट में महंगे मोबाइल का मतलब ऑनलाइन स्टडी में स्टूडेंट्स पर बढ़ेगा बोझ

फिलहाल भारत के पास स्थायी मिश्रित शिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र की तैयारी शुरू करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अधिकांश प्रमुख तकनीकी संस्थानों के पास ऑनलाइन सीखने के लिए डिजिटल बुनियादी ढांचा है। हालांकि कई अन्य विश्वविद्यालयों और स्कूलों ने बीते साल 2020 तक मामले में संघर्ष किया।

प्राइम टाइम नाइन टू इलेवन –

फिलहाल अधिकांश स्कूलों ने स्टूडेंट्स की ऑनलाइन पढ़ाई (Online Education) के लिए सुबह 9 से 11 बजे तक का टाइम नियत किया है। ऐसे में यह समय उन परिवारों के लिए परेशानी का सबब है जिनके परिवार में एक से ज्यादा बच्चे पढ़ने वाले हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकांश ऑनलाइन क्लासेस इस समय के दौरान ही लग रही हैं।

इस स्थिति में प्रत्येक बच्चे को ऑनलाइन पढ़ाने के लिए परिवार को अलग-अलग मोबाइल की जरूरत पड़ रही है। साधन संपन्न परिवारों के लिए तो यह साधारण सी बात है, लेकिन गरीब-मजदूर और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए नया मोबाइल खरीदकर सिम को रीचार्ज कराना जरा टेढ़ी खीर है।

बीच-बीच में व्यवधान –

आम तौर पर देखा जा रहा है कि, ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान कई स्टूडेंट्स या फिर उनके पैरेंट्स क्लास शुरू होने के काफी देर बाद जुड़ पाते हैं।

देर से जुड़ने के कारण वे बीच क्लास में टीचर से आग्रह करते हैं कि उनसे वंचित रह गई पिछली पढ़ाई को कृपया वे (टीचर) दोहरा दें। इस कारण तय समय से पढ़ाने और पढ़ने वालों की लय-ताल बीच में बिगड़ जाती है और पढ़ाई विषय से भटक जाती है।

प्रत्येक ऑनलाइन क्लास निर्धारित समय के लिए होती है। ऐसे में ज्यादातर समय स्टूडेंट्स/पैरेंट्स/गार्जियंस की समस्या के समाधान में ही निकल जाता है। नतीजा; मूल विषय पढ़ाई आधी-अधूरी ही हो पाती है।

ऑनलाइन स्टडी के आयाम -

दूरभाष आधारित इंटरनेट की तकनीक के सहारे दूरस्थ शिक्षा (ऑनलाइन स्टडी/Online Education) के जहां कई लाभ हैं वहीं कई परेशानियां भी। इस प्रणाली में इंटरनेट की उपलब्धता और उसके संचालन की समस्या ज्यादा मुखर है।

समस्या इंटरेनट कनेक्शन की -

भारत में इंटरनेट की यदि बात करें तो आम तौर पर परिवारों में मोबाइल की मदद से बच्चे ऑनलाइन एजुकेशन (Online Education) से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा तकनीक के जानकार लोग घर पर केबल इंटरनेट के सहारे भी ऑनलाइन एजुकेशन का लाभ ले रहे हैं।

आम तौर पर बीएसएनएल, वोडा-आईडिया और जिओ कंपनियां मोबाइल और केबल के जरिये इंटरनेट सर्विस प्रदान कर रही हैं। इन कंपनियों की सेवाओं से जुड़े लोगों को इंटरनेट सिग्नल की परेशानियों से अक्सर जूझते देखा जाता है।

लगातार सिग्नल न मिलने से कई बार स्टूडेंट्स और टीचर्स के बीच सीखने-सिखाने की प्रक्रिया बाधित होती है। कभी स्टूडेंट्स नहीं सुन पाते तो कभी शिक्षक समझा नहीं पाते। ऐसी ही एक परेशानी से जूझ रहे मध्यम वर्गीय परिवार के मुखिया ने अपनी परेशानी कुछ इन शब्दों में बयां की।

पहले बीएसएनएल की सिम थी, घर में सिग्नल न मिलने के कारण नंबर को जिओ में पोर्ट कराना पड़ा। लेकिन अब समस्या यह है कि; जिओ का प्लान काफी महंगा है। लॉकडाउन से पहले से ही कामकाज प्रभावित हुआ है, ऐसे में स्कूल की फीस के अलावा इंटरनेट और मोबाइल के अतिरिक्त आर्थिक बोझ ने घर का बजट बिगाड़ कर रख दिया है।

लोकेश साहनी, अभिभावक, जबलपुर, म.प्र.

ऑनलाइन एजुकेशन से जुड़ी तकनीकी परेशानियों का यह रहा समाधान।
कोरोना संकट में ई-लर्निंग तक कितनों की पहुंच?

समस्या तकनीकी कौशल की -

इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन एजुकेशन (Online Education) में तकनीकी अकुशलता दूसरा बड़ा सिरदर्द है। लॉगिन, स्क्रीन शॉट, स्कैनर, वाट्सएप, ईमेल जैसे तमाम मामलों में उन कई अभिभावकों/स्टूडेंट्स को अक्सर जूझते देखा गया है जो इन शब्दों/युक्तियों (तकनीक) से परिचित नहीं हैं।

लगभग दो साल से जारी ऑनलाइन शिक्षा पद्धति में इन तमाम परेशानियों से कई परिजन अब तक रोजाना दो-चार हो रहे हैं।

ऑनलाइन शिष्टाचार जरूरी -

स्कूल में बच्चों को इसलिए भेजा जाता है ताकि उनके जीवन में समाजिक शिष्टाचार की नींव पड़े। ऑनलाइन स्टडी की एक बड़ी खामी यह है कि आम तौर पर स्कूलों में सभ्य आचरण करने वाले बच्चे घर के खुले माहौल में अनुशासन से दूर होते जा रहे हैं।

स्कूल में बच्चे नियमानुसार उठने-बैठने के अभ्यस्त होते हैं। ऑनलाइन एजुकेशन में स्टूडेंट्स कुर्सी-टेबल के बजाय बिस्तर, सोफा जैसी आरामदायक चीजों पर पढ़ते समय आलसी बन रहे हैं।

अहम बात यह है कि ऑनलाइन कम्युनिकेशन का भी अपना शिष्टाचार होता है। इसमें कब माइक और वीडियो ऑन करना है, कब बंद करना है इसके भी अपने नियम हैं। ऑनलाइन रहते समय खास सतर्कता रखना जरूरी है नहीं तो बड़ी गलतियां हो सकती हैं।

सतर्कता इसलिए जरूरी -

यूपी में एक स्टूडेंट और उसके पिता की ऑनलाइन एजुकेशन (Online Education) के दौरान की गई बातों से इसी तरह की खामी उजागर हुई। दरअसल स्टूडेंट ने अपने पिता को बताया कि सोशल स्टडी की मैम कितना सज-धज के आई हैं, उन्होंने लिप्स्टिक, हाई-लाइटर और काजल लगाया है।

इस दौरान माइक और वीडियो ऑन था इस कारण यह बातें पूरे ग्रुप के लोगों ने देखी-सुनीं। यह बात हुई मासूमियत में हुई गलती की। बात करें बेहूदगी की तो ऑनलाइन क्लास में कभी अश्लील गाना बजाने, कभी अश्लील फोटो, वीडियो शेयर करने के मामलों से भी असहजता की स्थिति निर्मित हुई है।

तकनीक का सदुपयोग किया जाए तो वो वरदान है वरना दुरुपयोग करने पर अभिशाप भी। तकनीक के दुरुपयोग के दोषी स्टूडेंट्स को ग्रुप से बाहर करने, स्कूल से निकालने की ही सजा दी जा सकती है, लेकिन यह समस्या का समाधान नहीं कहा जा सकता।

परेशानी का सबब -

ऑनलाइन क्लास के साइड इफेक्ट शहर या राज्यों तक सीमित न रहकर संपूर्ण भारत में शिक्षकों, स्टूडेंट्स, परिजन के लिए परेशानी खड़े कर रहे हैं। ऐसे में ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान स्टूडेंट्स को पढ़ाई के साथ ही व्यवहार में भी अनुशासित रखना पढ़ाने वालों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।

फिर समाधान क्या है?

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है। दरअसल यह उतनी बड़ी समस्या नहीं है जितनी बन गई है। ऑनलाइन एजुकेशन में शिक्षकों, स्टूडेंट्स, पैरेंट्स से जुड़ीं अहम बातें यदि विज्ञापनों की तर्ज पर नियमित अंतराल पर टेलिविजन, सोशल मीडिया, इंटरनेट पर दिखाई, रेडियो पर सुनाई और समाचार पत्रों के माध्यम से पढ़ाई जाएं तो कई परेशानियां हल हो सकती हैं।

ऑनलाइन कम्युनिकेशन वर्कशॉप –

ऑनलाइन एजुकेशन में आ रही परेशानियों के हल के बारे में शिक्षक नंदकिशोर जादमे ने सुझाव दिया है। उनका कहना है शिक्षकों, अभिभावकों और स्टूडेंट्स के लिए ऑनलाइन एजुकेशन फ्रैंडली स्पेशल वर्कशॉप आयोजित करना चाहिए। इससे इस परेशानी को समाप्त किया जा सकता है।

वे कहते हैं यह वर्कशॉप संबंधित वर्ग से रूबरू होकर या फिर आभासी (वर्चुअल) तौर पर भी आयोजित किया जा सकता है। इंटरनेट सर्विस की तकनीक में सुधार और उसे संचालित करने के लिए तकनीकी कौशल के विकास का यह तरीका कारगर हो सकता है।

स्टूडेंट्स-पैरेंट्स और टीचर्स के बीच ऑनलाइन संवाद सेतु में आने वाली परेशानियों को शॉर्टलिस्ट कर वर्कशॉप का विषय तैयार कर ट्रेनिंग दी जा सकती है। टेलिविजन और रेडियो आधारित दूरस्थ शिक्षा एक मार्गी है। इंटरनेट आधारित ऑनलाइन स्टडी टू-वे कम्युनिकेशन है। जिसमें कई तकनीकों का अहम योगदान है। इन तकनीकों के बारे में तैयार मटेरियल संबंधित वर्ग तक पहुंचा कर समस्या को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।

नंद किशोर जादमे, शिक्षक, शासकीय माध्यमिक विद्यालय, बरसी, रतलाम, म.प्र.

माध्यमिक शिक्षक नंद किशोर जादमे का तर्क सही भी है। ऐसा इसलिए क्योंकि इंटरनेट पर मौजूद तमाम सॉफ्टवेयर और एप्लीकेशन के फंक्शन को चलाने के लिए तमाम ट्यूटोरियल्स की भरमार है। इनके सहारे भी कई लोगों ने तमाम सॉफ्टवेयर्स के संचालन के अपने कौशल में सुधार किया है।

सस्ता मोबाइल और इंटरनेट –

कोरोना की दहशत में दो साल का वक्त गुजरने को है, ऐसे में ऑनलाइन एजुकेशन को सरल बनाने के लिए सरकार का कोई कदम न उठाना सोचनीय है।

न तो सरकार ने सस्ते मोबाइल उपलब्ध कराए हैं और न ही ट्राई ने स्टूडेंट्स के लिए कोई सस्ता इंटरनेट प्लान ही जारी करने इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को निर्देशित किया है।

जिस तरह स्टूडेंट्स को रियायती अधिकार पत्र के जरिये यात्रा किराये में रियायत दी जाती है, उसी तरह यदि सस्ते मोबाइल और मुफ्त या रियायती अवरोध रहित इंटरनेट की सेवा भी स्टूडेंट्स को मुहैया कराई जाए तो बेपटरी हुई एजुकेशन की छुकछुक फिर रफ्तार पकड़ सकती है।

मंगेश जनार्दन धानोरकर, कम्प्यूटर हार्डवेयर इंजीनियर, जबलपुर, म.प्र.

इंटरनेट प्रोवाइडर्स का कहना –

इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर एयरटेल, जिओ, वोडा-आइडिया (वोडाइडिया), बीएसएनएल से हमने एजुकेशनल प्लान्स के बारे में पड़ताल की। यह दुर्भाग्य की बात है कि एडल्ट कंटेंट परोसने वाले तमाम ओटीटी प्लेटफॉर्म का फ्री ऑफर पेश करने वाली इन कंपनियों के पास ऑनलाइन पढ़ाई से संबंधित कोई फ्री तो क्या रियायती पेशकश तक नहीं है। हालांकि सभी का दावा नॉर्मल प्लान में एक-दूसरे से बेहतरी का जरूर है। पढ़िये किसका क्या कहना है।

रियायती प्लान तो नहीं है, ट्राई के बंधन के कारण सभी के प्लान एक से होते हैं। एयरटेल का माईफाई प्लान है। इसके पर्सनल वाईफाई हॉटस्पॉट से एक साथ 20 डिवाइस कनेक्ट हो जाते हैं। यह 20 मीटर दायरे में काम करता है। इसमें 2400 रुपये का हॉटस्पॉट डोंगल आता है जिसमें 140 दिन तक प्रतिदिन 1.5 जीबी डेटा मिलता है। अच्छे नेटवर्क के कारण इंदौर में कंपनी को बेहतर बढ़त मिली है।

रेहान खान, असिस्टेंट मैनेजर, एयरटेल, जबलपुर, म.प्र.

जिओ के पास भी स्टूडेंट्स के लिए किसी तरह का कोई रियायती प्लान नहीं है। हालांकि कंपनी के प्रतिनिधि ने राज एक्सप्रेस के सवाल के बाद ऐसे सुझाव को कंपनी की मीटिंग में रखने की बात जरूर की।

ऑनलाइन एजुकेशन के लिए फिलहाल कोई रियायती प्लान नहीं है। हमारे लगभग सभी प्लान एयरटेल के मुकाबले तुलनात्मक रूप से 50 रुपये किफायती हैं। स्टूडेंट्स हित में ऑनलाइन एजुकेशन संबंधी आपका (राजएक्सप्रेस/RajExpress) रियायती कीमत वाले प्लान का सुझाव कंपनी की मीटिंग में रखने योग्य है।

जावेद सिद्दीकी, एरिया बिजनेस हेड, जिओ, जबलपुर, म.प्र.

वोडाफोन-आइडिया के एएसएम आलोक सिंह ने बताया कि वोडा-आइडिया के कस्टमर्स सप्ताह में बचे अपने डेटा का उपयोग शनिवार, रविवार के दिन कर सकते हैं। सिंह का भी मानना है कि ऑनलाइन एजुकेशन के लिहाज से रियायती डेटा प्लान होना चाहिए।

सिंह ने माना कि; गूगल मीट, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या फिर वीडियो कॉलिंग में अधिक डेटा लगता है। ऐसे में दैनिक डेटा जल्द खत्म हो जाता है। उन्होंने बताया कि मौजूदा दौर में अपने कंज्यूमर्स को सबसे ज्यादा और सस्ता डेटा उनकी कंपनी वीआई दे रही है।

एजुकेशनल प्लान तो नहीं सभी ओपन कस्टमर प्लान हैं। नॉर्मल प्लान के तहत सबसे ज्यादा डेटा हम देते हैं। रोजाना रात्रि 12 बजे से प्रातः 6 बजे के बीच कंपनी फ्री डेटा देती है। ऐसे में डाउनलोडिंग संबंधित काम रात्रि में कर सकते हैं।

आलोक सिंह, एएसएम, VI, जबलपुर

बीएसएनएल की सुस्त चाल -

बीएसएनएल से भी हमने इस आशय संपर्क साधने की कोशिश की। वेबसाइट पर दर्शाए जा रहे कार्यालय के संपर्क नंबर या तो उपयोग में नहीं मिले या फिर हासिल मोबाइल नंबरों पर कॉल अटेंड ही नहीं हुआ। आपकी सुविधा के लिए आपको बता दें कि; बीएसएनएल के पास भी ऑनलाइन एजुकेशन के लिए किसी तरह का कोई रियायती प्लान नहीं है।

हालांकि यह बात जरूर है कि बीएसएनएल के प्लान प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले किफायती जरूर हैं। अब यह बात अलग है कि तमाम टावरों से लैस सरकारी स्वामित्व वाले दूरसंचार सेवा प्रदाता बीएसएनएल के सिग्नल की कमी की समस्या हर दम बनी रहती है।

पूरा देश जूझ रहा -

ऑनलाइन क्लास की तकनीकी समस्या सिर्फ एक स्कूल की परेशानी का सबब नहीं है। नेटवर्क की समस्या से लगभग अधिकांश स्कूल जूझ रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में यह समस्या ज्यादा बलवती है।

भारत के नौनिहालों और केंद्र एवं राज्य सरकारों के लिए ऑनलाइन एजुकेशन फिलहाल नई इबारत है। इससे जुड़े तकनीक, संसाधन और मूलतः जनमानस के आर्थिक हैसियत संबंधी गणित को सुलझाए बिना ऑनलाइन एजुकेशन एक्सप्रेस का रफ्तार पकड़ना आसान नजर नहीं आता है।

पैरेंट्स पर शिक्षकों का भार –

यह अकाट्य सत्य है कि तमाम स्कूल प्रबंधन ने बच्चों के दाखिले से लेकर उनकी पढ़ाई, कॉपी-किताब तक का शुल्क ले लिया है। अब समस्या यह है कि बच्चे ऑनलाइन स्टडी में घर पर पढ़ रहे हैं और पैरेंट्स को पल-पल बच्चों के साथ बने रहना जरूरी है। कब बोलना है, कब स्पीकर म्यूट-अनम्यूट करना है, इन तमाम बातों की पैरेंट्स को निगरानी करनी पड़ रही है।

मतलब ऑनलाइन स्टडी तमाम स्कूलों के लिए हर्रा लगे न फिटकरी, रंग आए चोखा वाली कहावत चरितार्थ कर रही है जबकि इसके कारण पैरेंट्स कोल्हू के बैल की तरह घनचक्कर होने मजबूर हैं! कारण नौनिहाल के भविष्य का जो है।

डिस्क्लेमर – आर्टिकल रिपोर्ट्स और कथनों पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

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